पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/१८३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४७
पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको


मैं भी मानता हूँ कि प्रजातीय कांग्रेससे भारतको प्रत्यक्ष लाभ तो कुछ न होगा, और उससे जो अप्रत्यक्ष लाभ होना है वह एकमात्र यह है कि . . .।

...दष्टि | अपने स्वार्थपर रखकर करता है तबतक उसके साथ भाईचारा नहीं होता। स्वार्थ और भाईचारेमें सदाका वैर है। मझे अंग्रेजोंमें भी भाईचारा दिखाई नहीं देता। उन्होंने भी स्वार्थ-नीति सीखी है। "ऑनेस्टी इज दी बेस्ट पालिसी" (ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है)-- उनका यह नीति-वचन मुझे तो दूषित वचन लगता है। उनकी नीतिको कल्पना इस वचनमें साकार हो उठी है। यह आलोचना लोकव्यवहारपर लागू होती है। (मेरे विचारके अनुसार तो) अंग्रेजोंमें पोलक --जैसे निःस्वार्थ लोग भी मौजूद हैं जिनका व्यवहार स्वार्थसे प्रभावित नहीं रहता।

जैसे आपने पोलकके सम्बन्धमें यह लिखा है. वैसे ही पोलकने भी इस घटनाके सम्बन्धमें लिखा है। मैं उस पत्रसे भी देखता हूँ कि पोलकने आपसे जो बात की वह शुद्ध भावसे ही की थी।

मेरा खयाल है कि आपके भाषण [ की रिपोर्ट ] मैंने फाड़ दी है। आशा यह थी कि वह पूराका-पूरा हमें नटेसनसे मिल जायगा। अब यदि आपके पास उसकी ल हो और उसे आप भज, तभी काम बन सकता है। में फिलहाल तो यह लिखे देता हूँ कि नटेसनकी रिपोर्टका अनुवाद न किया जाये। आपके सभी पत्रोंको तो मैं पढ़कर फाड़ देता हूँ। हाँ, पोलक और कैलेनबैकको आपके विचारोंसे साधारणतः अवगत करा दिया था। मेरा खयाल है कि मैंने इसमें अनुचित कुछ नहीं किया है।

आप यह खयाल करके पत्र लिखने में संकोच न करें कि मैं दिन-रात कार्य-व्यस्त रहता हूँ।

श्रीमती बेसेंटके भाषण मैने नहीं पढ़े हैं।

मैने आपके लेखपर की गई ‘गुजराती' पत्रकी आलोचना नहीं पढ़ी है। यदि किसी अन्य पत्रमें आलोचना हुई हो तो वह मुझे मिली नहीं है। यदि अब कहीं होगी तो मेरे पास आयेगी और 'गुजराती'की भी आ जायेगी। उनका समय अव आयेगा।

मैं बच्चोंको रातके समय 'काव्यदोहन में से कुछ पढ़कर सुनाता हूँ। प्रह्लाद आख्यान कल पूरा हो गया। साधारणत: हमारे जैसे विचार होते हैं उनका चित्रण जैसा इनमें आता है वैसा अंग्रेजीकी अच्छी कही जानेवाली पुस्तकोंमें कम ही देखने में आता है।

मैं यह माने लेता हूँ कि आप भाई छगनसे भी ऐसी पुस्तकें पढ़वायेंगे।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६२८) की फोटो-नकलसे । सौजन्य : सी० के० भट्ट

१. विश्व प्रजाति-सम्मेलन (यूनीवर्सल रेसेज कांग्रेस), जिसे इंडियन ओपिनियनने “ पालियामेन्ट ओंक मैन" लिखा था, जुलाई, १९११ में प्रजातीय प्रश्नके विभिन्न पक्षोंपर विचार करनेके लिए लन्दनमें किया गया था। इसमें विश्वके सब धर्मों और दर्शनोंके प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे और निवन्ध पढ़े गये थे। इसमें श्रीमती बेसेंट और प्रो० गोखले भी गये थे। इंडियन ओपिनियन, २६-८-१९११ ।

२. यहाँ एक पृष्ठ गायब है। ३. डॉ. मेहताके पुत्र ।