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पत्र : एशियाई पंजीयकको


अन्तर्गत आनेका दावा करते है। इसलिए मुझे भरोसा है कि आगे चलकर मेरे द्वारा कुछ और नाम भेजे जानेपर आप कोई आपत्ति नहीं करेंगे।

आप देखेंगे कि कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास शान्ति-रक्षा अध्यादेश (पीस प्रिज़र्वेशन ऑडिनेन्स) के अन्तर्गत जारी किये गये अनुमतिपत्र मौजूद हैं। चूंकि ये व्यक्ति अभी ट्रान्सवालमें है, इसलिए इनके नाम सूची में सम्मिलित कर लिये गये हैं, परन्तु ये उन नामोंकी श्रेणी में नहीं आते जिन्हें १८० नामोंकी सूचीमें रखनेका विचार किया जा रहा है।

युद्ध-पूर्वके निवासियोंकी सूची तैयार करने में उन लोगोंके नाम सम्मिलित करनेकी सावधानी बरती गई है जो ट्रान्सवालमें युद्धसे तीन वर्ष पहले तक के अपने निवासका कोई बिलकुल साफ सबूत जुटा सके है। परन्तु उनके दावे ठोस है या नहीं, इसे जिम्मेदारीके साथ न तो संघ कह सकता है और न मैं। अधिनियमोंके अन्तर्गत इससे प्रार्थनापत्र देने वाले व्यक्तियोके नाम शामिल न करनकी सावधानी तो हमन बरती है, परन्तु हम यह दावा नहीं करते कि इस मामले में यह सूची सोलह आने विश्वसनीय है। बहुत सम्भव है कि उनमें से कुछ लोग पहले प्रार्थनापत्र दे चके हों और जानबूझकर या अनजाने ही संघको भ्रममें डाले हुए हों।

सूचीमें समझौतेके अन्तर्गत आनेवाले १५० भारतीयोंमें से.. और समझौतेके अन्तर्गत आनेवाले, इस समय भारतमें मौजूद ३० भारतीयोंमें से. . .और शान्ति-रक्षा अध्यादेश द्वारा जारी किये गये अनुमतिपत्र रखनेवाले भारतीय सम्मिलित हैं।

यदि आप अब यह सूचित करने की कृपा करें कि जोहानिसबर्गमें कार्यालय कब खुलेगा तो मैं आपका आभार मानूंगा।

आपका, आदि,

टाइप किये हुए अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५५८७) तथा गांधीजीके स्वाक्षरोंमें प्राप्त अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५५५८) की फोटो-नकल से।

१. ये वे लोग थे जिन्होंने १८८५ के डच कानून ३ के अन्तर्गत जारी किये गये अपने पंजीयन प्रमाणपत्रोंके बदले त्रिटिश शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत जारी किये गये अनुमतिपत्र ले लिये थे; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २८२ । वे "किसी भी एशियाई कानूनके अन्तर्गत" पुनः पंजीयनके लिए प्रार्थना-पत्र नहीं दे सकते थे; देखिये “पत्र: गृह-मन्त्रीको", पृष्ठ ७७-७८ ।

२. यह कार्यालय ९-९-१९११को खुला था ।