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११५. तूफान उमड़ रहा है


थोरो उन लोगोंके लिए जेल गये, जो उनकी जातिके नहीं थे। इसी प्रकार श्री रिचको भी शायद हम लोगोंके लिए, जिनकी चमड़ी उनके समान नहीं है, जेल जाना पड़े। उन्हें इस आशयका नोटिस मिला है कि क्रूगर्सडॉर्पमें जो बाड़ा उनके नामपर पंजीकृत है, उन्होंने उसमें भारतीयोंको बसने देकर अपराध किया है। हमें मालम है कि इस नोटिसके कारण श्री रिच द्वारा बाड़ोंके छोड़ दिये जानेकी सम्भावना नहीं है। अधिकारी अच्छी तरह जानते हैं कि श्री रिच तो केवल ट्रस्टी है और वे उक्त बाड़ोंको केवल अपने भारतीय रक्षितोंकी ओरसे अपने नामपर रखे हुए हैं। श्री रिचने उनको अपने बाड़में रहने की इजाजत नहीं दी है। बल्कि वे (भारतीय) खुद ही वहाँ रह रहे हैं। असली स्थिति यही है; यद्यपि कानूनकी निगाहमें श्री रिच ही इसके मालिक है, कोई दूसरा नहीं।

क्लार्क्सडॉर्पके भारतीयोंको धमकियाँ दी गई है। रूडीपूर्ट में तो एक मामला दायर भी कर दिया गया है, जिसकी अपील विचाराधीन है। अब यह सम्मान क्रूगर्सडॉर्पको मिला है। स्पष्ट ही अधिकारियोंका अनुमान है कि ज्यों ही वे कोई कदम उठायेंगे भारतीय व्यापारी अपनी दुकानें और माल छोड़कर चले जायेंगे। श्री नेसरने दक्षिण आफ्रिकाको सूचित किया है (और वे निश्चित रूपसे जानते होंगे) कि सरकार अगला कदम उठानेसे इसलिए रुक गई है कि यह राज्याभिषेकका वर्ष है; और यह भी कहा है कि कानूनी कार्रवाई अगले वर्ष की जायेगी। इसलिए हमारा खयाल है कि तबतक सरकार अपने हथियारोंपर सान चढ़ाती रहेगी। श्री रिचको दिया गया नोटिस भारतीयोंके लिए इस बातकी चुनौती है कि वे अपना पानी दिखायें। हमें तो निश्चय है कि इस सूचनासे सम्बन्धित भारतीय यदि और किसी कारणसे नहीं तो केवल इसलिए कि खद श्री रिचको शायद जल जाना पडे. दढ रहेंगे और सरकारको एक बार फिर दिखा देंगे कि यदि वह एशियाई जातियोंको अपने साथ लेकर नहीं चलती, तो ऐसे किसी भी कानूनपर अमल नहीं हो पायेगा, जो उनके हितोंके खिलाफ जाते हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन,१२-८-१९११

१. श्री रिच ऋगर्सडॉर्पके खनिज क्षेत्रोंके कुछ ऐसे बाड़ोंके कानूनन मालिक थे, जो भारतीयों के कब्जेमें थे। इस इलाकेको सन् १९०८ के कानून ३५ के अन्तर्गत “घोषित क्षेत्र" करार दे दिया गया था । अगस्त ३, १९११को ऋगर्सडोंपैके सरकारी वकीलने उनपर यह नोटिस जारी किया कि वे १९०८ के कानून ३५के खण्ड १३०का उल्लंघन कर रहे हैं, और इसपर उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। उन्हें निर्देश दिया गया था कि वे अपनी भारतीय प्रजाको बाड़े खाली कर देनेको कहें। इंडियन ओपिनियन, १२-६-१९११ ।

२, संघ-संसदके सदस्य ।