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पत्र: हरिलाल गांधीको


मुश्किल मालूम होता है। अतिरिक्त व्यक्तियोंको रखने से जो खर्च आयेगा, वह आपसे मांगनेका मन होता है। ऐसी सम्भावना है कि काम बढ़नेपर सब मिलाकर खर्च एक हजार पौंडका बैठेगा। यदि उतना खर्च करनेकी अनुमति दे सकें, तो दीजिएगा। जो खर्च होगा, उससे जमीन इत्यादिकी कीमत बढ़ जानेकी सम्भावना है।

मैंने जो दूसरी मदद मांगी है, यह मदद उसके अलावा है। फीनिक्समें सुदृढ़ आधारपर विद्यालय शुरू किये बिना चारा नहीं है। उसके लिए चन्दा करने के उद्देश्य यहाँसे निकलनेकी बात सोच रहा हूँ।

मुझे कई बार यह ख्याल आया है कि आप भारत वापस जाते हुए एक बार यहाँ आकर फीनिक्स देख जायें, तो बहुत अच्छा हो। छगनलाल इस सप्ताह देशसे रवाना हो चुका होगा।

मोहनदासका वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०८८) से।

सौजन्य : सी० के० भट्ट

९८. पत्र : हरिलाल गांधीको

जुलाई ३, १९११
७॥ बजे सायं

चि० हरिलाल,

तुम्हारा जंजीबारसे भेजा हुआ पत्र मुझे फीनिक्समें मिला था। उसके बाद दूसरा तो आ भी नहीं सकता था। आशा है, अब थोड़े ही दिनमें आयेगा। तुम्हें जंजीबारमें लोगोंकी ओरसे सम्मान प्राप्त हुआ, उसमें मुझे इस बातसे सन्तोष हुआ है कि समारोहमें भाग लेनेवालोंमें अधिकांश खोजे[१] थे; और दूसरी बात यह कि वे सत्याग्रहके नामसे डरे नहीं। तुमने ठीक जवाब दिया। तुम्हारे जवाबका एक छोटा अंश 'इंडियन ओपिनियन' में देना मुझे ठीक लगा, इसलिए मैंने वह दे दिया है।[२] उसे तुमने देखा होगा। 'स्टार'में हर हफ्ते किसी जाने-माने व्यक्तिका परिचय प्रकाशित होता है। इसी सिलसिलेमें मेरा भी प्रकाशित हुआ है। वह मैं तुम्हें भेज रहा हूँ। देखकर और पढ़कर भाई सोराबजीको भेज देना। वे अब वहाँ पहुँच गये होंगे।

डर्बनमें तो हमारे लोगोंने कमाल कर दिया।[३] राज्याभिषेकके दिन मैं तो

फीनिक्स चला गया था, इसलिए उस दिन जो धूम-धाम हुई, उसके लिए सारी शाबाशी स्थानिक योद्धाओंको ही दी जानी चाहिए।

११-८
 
  1. मुसलमानोंका एक सम्प्रदाय।
  2. देखिए "एक सत्याग्रहीका सम्मान", पृष्ठ ११० ।
  3. डबनके भारतीय समाजने राज्याभिषेकके समारोहका बहिष्कार किया था। देखिए “राज्याभिषेक', पृष्ठ १०८-११० ।