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७९. पत्र: जी० ए० नटेसनको

टॉल्स्टॉय फार्म
लॉली स्टेशन
ट्रान्सवाल मई ३१, १९११


प्रिय श्री नटेसन,

अस्थायी समझौतेके बारेमें सूचना देते हुए प्रोफेसर गोखलेको जो तार' मैंने भेजा था, उसमें उनसे अनुरोध किया था कि वे तारका मजमून आपको सूचित कर दें। आशा है, उन्होंने वैसा ही तार आपको भेज दिया होगा। समझौता हमारी आशासे ज्यादा अच्छा हुआ। हमें ऐसी आशा नहीं थी कि हम वैयक्तिक अधिकारोंकी रक्षा करने में समर्थ होंगे। ये अधिकार अब पूरी तरह सुरक्षित कर दिये गये हैं। लेकिन ऐसा कदापि नहीं माना जा सकता कि हमारी परेशानियाँ समाप्त हो गई। जनरल स्मट्सके द्वारा अपने वादोंको कानूनी जामा पहनाना बाकी है। ऐसा किया जायेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। अलबत्ता, अपनी कीर्तिकी उन्हें कोई परवाह ही न हो तो बात दूसरी है। अन्देशा वचन तोड़ने का नहीं है, बल्कि यह है कि वे कहीं ऐसे दूसरे कानून भी न पास करवा लें जिनका अधिवासी भारतीयोंकी स्थितिपर हानिकर प्रभाव पड़े। इसलिए उनके कामोंपर बारीकीसे नजर रखनी पड़ेगी। जो-कुछ पाया है उसमें आपके वहाँ किये गये भव्य कार्यके हम कितने ऋणी हैं, यह कहनेकी आवश्यकता नहीं है। मुझे आशा है कि आप दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवालोंकी स्थिति सुधारनेकी दिशामें अपना आन्दोलन जारी ही रखेंगे। मुझे विश्वास है कि आप "इंडियन ओपिनियन" के उन स्तम्भोंको बराबर देखते रहते है, जिनमें साम्राज्य-सरकार को हालमें भेजे गये सभी प्रार्थनापत्र प्रकाशित हुए है।

आपने गिरमिटके प्रश्नपर जो काम किया है, उसके लिए भी दक्षिण आफ्रिकाके प्रत्येक भारतीय आपका कृतज्ञ है। इस प्रथाका करीब १८ वर्ष अवलोकन करनेके

१. यह उपलब्ध नहीं है।

२. देखिए “प्रार्थनापत्र : उपनिवेश-मन्त्रीको", पृष्ठ ५०-५५ और अभ्यावेदन : उपनिवेश मन्त्रीको", पृष्ठ ६८-७२।

३. सन् १९११की पहली जुलाईको भारत सरकारने यह निषेधाज्ञा लागू की कि गिरमिटमें बंधकर भारतीय मजदूर बाहर न जायें देखिए खण्ड १० “ महत्त्वपूर्ण निर्णय ", पृष्ठ ४२५-२६। किन्तु इसके लागू किये जानेके पूर्व ही नेटालके बागान-मालिकोंके लिए. गिरमिटिया मजदूर भर्ती करनेके लिए कुछ सरदार भारतके लिए प्रस्थान कर चुके थे। मार्च १, १९११ को मद्रासकी भारतीय दक्षिण आफ्रिकी लीग (इंडियन साउथ आफ्रिकन लीग) के तत्वावधानमें एक सार्वजनिक सभा हुई, जिसमें सर्व सम्मतिसे भारत सरकारसे यह अनुरोध करते हुए एक प्रस्ताव पास किया गया कि वह उन सरदारोंको इस तरहके मजदूर भर्ती करनेसे रोके। जी० ए० नटेसनने इस प्रस्तावका समर्थन किया था और उन्होंने एक गश्ती-पत्र लिखकर मद्रासके सभी गाँवोंको इन सरदारों के विरुद्ध आगाह कर दिया था। यह गश्ती-पत्र ५-८-१९११ के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित भी किया गया था।