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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


एक ज्वायंट स्टॉक कम्पनी है और इसके लगभग सभी सदस्य उपनिवेशमें जन्मे हुए भारतीय है। इनकी जन्मभूमि नेटाल है और भारत तो इनके लिए केवल कल्पनामें रहने- वाली वह भूमि है, जहाँसे उनके माता-पिता यहाँ आये थे। यह कारोबार इस तरहके विशिष्ट अधिकारी व्यक्तियोंके समूहका पहला ही प्रयास है। कम्पनीकी पूंजी नाममात्रकी, ६,००० पौंड है और उसके ४८० पंजीकृत साझेदार है। इस नई संस्थाका भविष्य क्या है, यह हम नहीं जानते। परन्तु मोटे तौरपर कहा जा सकता है कि उसका भविष्य मुख्यत: उसके सदस्योंकी सम्मिलित योग्यता, उत्साह और सबसे अधिक उनकी दिलचस्पीपर निर्भर करेगा। जो भी हो, आज तो डर्बन नगरकी हद तक परवाना-अधिकारीने, जहाँतक उससे हो सकता था, कम्पनी द्वारा अपनी सफलताके लिए किये गये प्रयत्नोंपर रोक लगा दी है। उसने एक [अन्य नामपर] चालू परवानेको इस कम्पनीके नाम जारी करनेसे इनकार कर दिया है। यहाँ ब्रिटिश भारतीयोंके नामोंपर पहलेसे जारी परवानोंकी संख्यामें वृद्धि होनेका तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। इस अधिकारीने अपनी इनकारी प्रकट करते हुए जो कारण दिये हैं वे इतने असंगत, अन्यायपूर्ण और हृदयहीन है कि यदि उपर्युक्त विवरणमें छप जानेपर भी हम उन्हें फिर यहाँ दुहरायें तो अनुचित न होगा। परवाना-अधिकारी लिखता है :

"मेरी रायमें किसी चालू परवानेको एक ऐसी व्यावसायिक संस्थाके नामपर बदल लेना मूर्खता होगी जिसके बहुत-से सदस्य हैं। कारण, व्यक्तिगत मालिकीकी पेढ़ी तो मालिकको मृत्यु होनेपर या उसके अवकाश-ग्रहण करनेपर बन्द हो सकती है, परन्तु इन व्यापारियोंकी कम्पनीके वारिस तो सर्वदा ही बने रहेंगे। क्योंकि वे तो आते-जाते रह सकते हैं। और उनमें से ज्यादातर सदस्योंके हिस्से भी बहुत छोटे हैं।

हमारी समझमें नहीं आता कि किसी पेढ़ीके वारिसके हमेशा बने रहने में किसी परवाना अधिकारीको आपत्तिकी क्या बात है? परन्तु बेशक यहाँपर उक्त अधिकारी श्री मोलीनोका आशय केवल भारतीय व्यापारसे है, जिसे अपनी शक्ति-भर जब भी मौका लगे काटना-छाँटना, उन्होंने अपना कर्त्तव्य मान लिया है। उन्होंने एक यह सिद्धान्त भी प्रतिपादित किया है कि किसी वर्तमान मालिकके मरने या विरत होनेपर उस कारोबारको ही समाप्त कर देना चाहिए। इस तरह वे कारोबारको जबरदस्ती बेच देने और ऐसी पेढ़ियोंको भारी नुकसान उठानेपर मजबूर करनेकी बात सोच रहे हैं। इस अधिकारीने परिषदमें भाषण भी दिया। किसी परवाना-अधिकारीका इस प्रकार पक्ष लेकर बोलना और उसे इस तरह बोलने देना एक अजीब बात है। इस भाषणमें श्री मोलीनोने आत्मरक्षा अर्थात् डर्बनमें रहनेवाले यूरोपीयोंकी आत्मरक्षा-- की दलील देकर अपने इस निरंकुश कृत्यका औचित्य सिद्ध करनेकी कोशिश की। इस अति भ्रामक सिद्धांतका कुछ भी अर्थ क्यों न हो, परवाना अधिकारीने यहाँ इस तथ्यकी सर्वथा उपेक्षा कर दी कि उक्त कम्पनीके अधिकांश ग्राहक आखिरकार भारतीय ही है। मैं तो यही आशा कर सकता हूँ कि इस कम्पनीके ४८० सदस्य इस संस्थाके जीवनके प्रारम्भमें ही इसका गला घोंटे जानके यत्नको चुपचाप सहन नहीं करेंगे; और कम्पनीका हर