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५७. मगनलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश[१]

[मई ८, १९११ के आसपास]

[२]

किन्तु देखता हूँ कि थी। इसलिए मैं बीचमें कम ही आता हूँ। मेरा इरादा फीनिक्स अगले मासमें आनेका है। उस समय ज्यादा बातचीत हो सकेगी। गायकी बात अभी स्थगित रखना। सैम ऐसा ही चाहते हैं। प्रेसके काममें से एक घंटा रोज बचा लेने का विचार उत्तम है और होना भी यही चाहिए। प्रेसमें लगे सभी लोगोंके कामके घंटोंमें कुछ कमी कर दी जाये। इस प्रकार बचाया हुआ समय सब लोग खेतीके काममें लगायें यानी सार्वजनिक कार्यमें सब लोगोंको प्रतिदिन ९ घंटे देने हों तो हम लोगोंको उनमें से ८ घंटे या कम-से-कम शेष. इसी प्रकार दूसरेमें . . . बसाया है तो . . . मोची, लुहार आदि बनेंगे और उसे ग्रामीण जीवनके अनुसार चलायेंगे।

पुरुषोत्तमदाससे कहना कि रंग-रोगनके खर्चकी रकम ले लें और वह पैसा मकान-खाते डाल दें। शेष बादमें लिखूगा।

हरिलालने जो किया वह बहुत विचित्र और दुःखदायी है। दोष मेरा है या कह, परिस्थितिका है उसका तो नहीं ही है।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५०८६) सौजन्य : राधाबेन चौधरी

५८. तार : मद्रास प्रान्तीय परिषदको

[३]

मई ९, १९११

धन्यवाद। आप देखेंगे कि अगर मातृभूमिसे सहायता मिलती रही तो किसी भी कीमतपर संघर्ष चालू रखेंगे।

[मो० क० गांधी]

[गुजरातीसे]
गुजराती, १४-५-१९११
  1. पत्रके प्रारम्भिक पृष्ठ गायब हैं और यह पृष्ठ भी जहाँ-तहाँ फटा हुआ है। लेकिन पत्रकी विषय- वस्तुसे मालूम होता है कि यह मगनलाल गांधीके नाम लिखा गया था।
  2. पिछले शीर्षकमें यानी मई ८, १९११को प्राणजीवन मेहताको लिखे अपने पत्रमें गांधीजीने पहले- पहल इस बातकी चर्चा की है कि हरिलाल उन्हें सूचित किये बिना घर छोड़कर चला गया है । इससे लगता है कि यह पत्र उसी दिनके आसपास लिखा गया होगा ।
  3. मद्रास प्रान्तीय परिषद (तात्पर्य शायद महाजन सभासे है) ने गांधीजीको बधाइयों भेजी थीं। यह तार शायद उसीके उत्तरमें किया गया था। तारकी मूल अंग्रेजी प्रति उपलब्ध नहीं है, इसलिए यह अनुवाद गुजराती नामक पत्रमें प्रकाशित उस तारके गुजराती अनुवादपर आधारित है।