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४१२. पत्र : बदरीको

मार्च १०, १९११

प्रिय बदरी,

शंकरसिंहके बारेमें मैंने कुछ नहीं किया है । क्रम संख्या संघके ' गजट' में मिलेगी । श्री पोलक या 'इंडियन ओपिनियन से सम्बन्धित किसी व्यक्तिसे आपको सारी जान- कारी मिल जायेगी । मेरा खयाल है, आप शीघ्र ही जोहानिसबर्ग वापस आ जायेंगे, परन्तु इस समय इस सम्बन्धमें नहीं सोचना चाहिए । संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२६६ ) से ।

४१३. पत्र : गृह मन्त्रीके निजी सचिवको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च १०, १९११

महोदय,

मेरे इसी ९ तारीखके तारके उत्तरमें आपका तार मिला, जिसमें आपने मेरे संघको सूचित किया है कि जनरल स्मट्स श्री रिचको मान्यता न देनेके अपने निश्चयसे टलने को तैयार नहीं हैं; क्योंकि वे अनुभव करते हैं कि अब इस मौकेपर इस मामलेमें ऐसे व्यक्तिको लानेकी आवश्यकता नहीं है जो उनके लिए सर्वथा अजनबी है। उनका कहना है कि भारतीय समाजके नेताओंको भरोसा रखना चाहिए कि श्री गांधी द्वारा भेजे गये उनके अबतक के प्रतिवेदनोंपर, और उन अन्य सुझावोंपर जो वे आगे पेश करना चाहें, सरकार पूरी तौरसे विचार करेगी, जो मुद्दे उठाये गये हैं, उनपर जोर देनेके लिए किसी व्यक्तिका केप टाउन आना सर्वथा अनावश्यक है । इस तारमें जो आश्वासन दिया गया है, उसके लिए मेरा संघ कृतज्ञ है और जनरल स्मट्सकी इच्छाके अनुसार जोहानिसबर्गसे कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा जायेगा ।

१. गांधीजीके एक मुवक्किल, जिन्होंने गांधीजीको मुख्तयारीके सामान्य अधिकार दे दिये थे । २. ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षके हस्ताक्षरसे भेजे गये इस पत्रका मसविदा अनुमानत: गांधीजीने तैयार किया था । १८-३-१९११ के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित होनेवाले गांधी-स्मट्स-पत्र-व्यवहार में यह पत्र भी शामिल था । ३. देखिए "तार : गृहमन्त्रीके निजी सचिव और रिचको ", पृष्ठ ४७७-७८ ।