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हमीद गुल

ट्रान्सवालके बाहर पैदा होनेवाले बच्चोंके अधिकारके विषयमें अस्पष्ट है; परन्तु १९०७ अधिनियम के अन्तर्गत रजिस्ट्रारको ऐसे मामलों में प्रमाणपत्र देनेका अधिकार है और यह मामला ऐसा है कि प्रमाणपत्र दिया जा सकता है । न्यायाधीश मेसनके कथनानुसार रजिस्ट्रारने यह मानकर कि १९०७ के कानूनके अनुसार उन्हें ऐसा विवेकाधिकार प्राप्त नहीं है, भूल की है। जिस कानूनके द्वारा नाबालिगोंको निकाल बाहर किया जा सकता है, उस कानूनकी उक्त न्यायाधीश महोदयने घोर निन्दा की है ।

इन सारी बातोंसे हमें तो ऐसा लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय अपना निर्णय श्री छोटाभाईके ही पक्षमें देगा ।

न्यायाधीशों द्वारा की गई आलोचना बताती है कि दोनों कानून बहुत उलझे हुए हैं और इस कारण वे रद होने ही चाहिए। न्यायाधीश मेसनने जैसा निर्णय दिया है वैसा निर्णय हो जाये, यह काफी नहीं होगा । श्री छोटाभाईके लड़के-जैसी स्थितिवाले बालकोंको प्रमाणपत्र दिया जाये या नहीं यह रजिस्ट्रारके हाथमें है; इसका अर्थ यह हुआ कि यह उसकी मेहरबानीपर निर्भर है । किन्तु नाबालिगोंको प्रमाणपत्र दिये जायें या नहीं, इस बातका अधिकार भारतीय प्रजा किसी व्यक्तिकी मेहरबानीपर नहीं छोड़ सकती । जिस बातका अधिकार माता-पिताको प्राप्त है उसका अधिकार बच्चोंको अनिवार्य रूपसे मिलना चाहिए। और यदि भारतीय समाजमें बल होगा तो वे उन्हें मिलेंगे ही, भले अदालत चाहे जो निर्णय दे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९१०

३२९. हमीद गुल

खबर मिली है कि केप टाउनवासी श्री यूसुफ गुलके सुपुत्र श्री हमीद गुल इंग्लैंडमें डॉक्टरीकी अन्तिम परीक्षामें उत्तीर्ण हो गये हैं। हम इसके लिए श्री हमीद गुल और श्री यूसुफ गुलको बधाई देते हैं । ऐसी ऊँची परीक्षामें उतीर्ण होना, श्री हमीदकी उद्यमशीलता और कुशाग्र बुद्धिका द्योतक है। हम आशा रखेंगे कि श्री हमीदके ज्ञान और गुणोंका लाभ भारतीय समाजको मिलेगा। मालूम हुआ है कि वे कुछ ही दिनोंमें इंग्लैंडसे दक्षिण आफ्रिका लौटनेवाले हैं ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९१०