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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

मुझे आपकी ' टाइप की हुई प्रतिलिपि प्राप्त हुई थी। इसलिए उसके बारेमें लेखकसे पूछा गया। उन्होंने कहा कि पत्र उन्हींका है और कृपापूर्वक उसे छापनेकी अनुमति दे दी।

मैं उस महान् उपदेशकका विनीत अनुयायी रहा हूँ और एक लम्बे अरसेसे उन्हें अपना मार्ग-दर्शक मानता आया हूँ; अतएव, उनके पत्रके -विशेषत: इस पत्रके जो अब संसारके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है-प्रकाशनसे सम्बद्ध होना मेरे लिए सम्मानकी बात है।

यह कहना, एक साधारण तथ्यको प्रकट करना है कि प्रत्येक भारतीयकी राष्ट्रीय आकांक्षाएँ होती हैं, वह इसे स्वीकार करे या नहीं। परन्तु इस आकांक्षाका सही अर्थ क्या है और विशेषत: इस लक्ष्यकी सिद्धिके उपाय क्या हों-- इन बातोंके सम्बन्ध में जितने भारतीय देशभक्त हैं, उतने ही मत हैं।

इस लक्ष्यकी प्राप्तिका एक माना हुआ और 'चिर प्रचलित' उपाय हिंसा है। इस उपायका एक सबसे बुरा और निन्द्य उदाहरण सर कर्जन वाइलीकी हत्या थी। अत्याचारकी समाप्ति अथवा किसी सुधारके लिए हिंसात्मक उपायके स्थानपर बुराईका प्रतिरोध न करनेके तरीकेको प्रतिष्ठित करनेके लिए टॉल्स्टॉयने अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया है। वे हिंसाके रूपमें व्यक्त घृणाका सामना कष्ट-सहनके रूपमें व्यक्त प्यारसे करना चाहते हैं। वे प्यारके इस उदात्त और दैवी नियममें काट-छाँट करनेवाले किसी अपवादकी गुंजाइश नहीं मानते। वे इस नियमको उन समस्त समस्याओंपर लागू करते हैं जिनसे मानवजाति त्रस्त है।

टॉल्स्टॉय पाश्चात्य संसारके एक अत्यन्त स्पष्ट विचारक और महान लेखक हैं। उन्होंने एक सैनिक की हैसियतसे यह देखा है कि हिंसा क्या है और वह क्या-क्या कर सकती है। जब वे आधुनिक विज्ञानके नियमका-जिसे झूठमूठ ही नियम कहा जाता है-अन्धानुकरण करने के लिए जापानकी भर्त्सना करते हैं और उस देशके लिए बड़ेसे-बड़े संकटोंकी आशंका करते हैं तब हमें रुकना और सोचना ही चाहिए कि कहीं अंग्रेजी शासनसे अधीर होकर हम एक बुराईके बदले दूसरी, उससे भी बड़ी बुराईको तो दाखिल नहीं करना चाहते । भारतमें विश्वके महान् धर्म जन्मे और फूले-फले हैं। यह देश जिस दिन, यूरोपके लोगोंको दासताकी स्थितिमें पहुँचा देनेवाली और उनमें मानव-परिवारको विरासत - उनकी उच्चतम प्रवृत्तियों--का लगभग गला घोंट देनेवाली, घृणित औद्योगिक सभ्यताको प्रक्रियासे गुजरेगा और जिस दिन इसकी पवित्रभूमिपर बन्दूकें बनाने के कारखाने खड़े होने लगेंगे, उस दिन इसकी राष्ट्रीय विशिष्टता खत्म हो जायेगी; भारत भारत नहीं रह जायेगा, और चाहे जो भी बन जाये।

१. देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ४४४ । २. देखिए खण्ड ९, परिशिष्ट २७ ।

३. भारत-मन्त्रीका राजनीतिक सहायक, जिसे एक पंजाबी विद्यार्थी मदनलाल धींगराने जुलाई १,१९०९ को लंदनके साउथ कैंसिंगटनमें स्थित 'इम्पीरियल इन्स्टीट्यूट' में राष्ट्रीय भारतीय संवके एक स्वागत-समारोहमें गोली मार दी थी। देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ३०१ ।


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