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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

हैं। अगर ऐसा ही करता रहा तो यह लड़का बहुत सँभल जायेगा। फीनिक्समें वह विचारोंमें डूबा रहता था; अब उसकी वैसी दशा नहीं है। यह शारीरिक परिश्रमका प्रताप है। हमें यह जो मोटा-ताजा शरीर मिला है हम उसका दुलार करते हुए बुद्धि-बलसे अपनी जीविका कमानेका ढोंग करते हैं, इसीसे हम पाप-कर्मी बन जाते हैं और हमें हजारों ऐब सूझते हैं। काफिर लोगोंको, जिनके साथ मैं [आजकल ] रोज काम करता हूँ, मैं अपनेसे बढ़कर मानता हूँ। जो काम वे अज्ञानपूर्वक करते हैं वही हमें ज्ञानपूर्वक करना है। बाह्य रूपसे तो हमारा काम भी काफिरों-जैसा ही होगा। हरिलाल न जाये इसके अन्य कारण भी इसीमें से निकाल सकोगे।

मेरे खयालसे तुम्हारी तुनुक-मिजाजीका भी इलाज यही है। शरीर तो बैल अथवा गधे-जैसा है; उसे तो लादते ही रहना चाहिए। ऐसा करनेसे क्रोध आदि दोष दूर हो जाते हैं। मैं इस फार्मसे फीनिक्सकी त्रुटियाँ दूर करनेके उपाय ढूँढ़ता रहता हूँ। इसीलिए यहाँ अलग नीति रखी है। हरएक अपना-अपना खेत जोते-बोये, इसकी अपेक्षा यदि सब मिलकर सारी जमीन जोतें तो हम बहुत जल्दी ज्यादा अच्छी फसल पैदा कर सकते हैं। अभी तो इसके हो सकनेकी सम्भावना मैं नहीं देखता। लेकिन मैंने यह सुझाव दिया था कि जिनके मन आपसमें मिलते हों वे यह कदम उठायें तो अच्छा होगा। यह सुझाव मैंने [ खासकर] तुम्हारे और पुरुषोत्तमदासके विषयमें दिया था। इसमें अन्य अनेक विचार निहित हैं। किन्तु मेरे मनमें आजकल क्या चल रहा है, यह बतानेके लिए इतना लिख दिया है। -

प्रेसका स्टॉक बेचनेसे होनेवाली आयको नफा नहीं माना जा सकता। उसे तो पूंजीके खातेमें ही डालना चाहिए। बाहरका काम (जॉब वर्क) छोड़ देनेसे पैसेका लाभ हुआ या नहीं, इसकी जाँचमें पड़नेकी जरूरत नहीं; उसे छोड़ देनेसे एक झंझट खतम हुई।

[ गुजरातीसे ]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९३४) से ।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।

१. पत्र अधूरा है ।