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१४०. पत्र : जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग ]
अप्रैल ४, १९१०

सत्याग्रही कैदियोंके साथ होनेवाले सलूकके बारेमें, आपका इस मासकी पहली तारीखका पत्र संख्या १४५९/१० मिला । मेरा संघ यह माँग नहीं करना चाहता कि सत्याग्रहियोंको जिस श्रेणीमें रखा जाता है, उनके साथ उससे भिन्न अन्य किसी श्रेणीका-सा सलूक किया जाये। मेरे संघकी शिकायत तो यह है कि यदि सरकार इन कैदियोंके साथ और ज्यादा सख्ती नहीं वरतना चाहती तो उनको ऐसी जेलमें नहीं भेजा जाना चाहिए, जहाँ, मेरे संघके खयालमें, केवल पक्के अपराधी ही भेजे जाते हैं और जहाँ अन्य सभी जेलोंमें मिलनेवाली सुविधाएँ छीन ली जाती हैं ।

मेरे संघने खुराकके साथ घी मिलनेकी जो माँग की है, वह केवल सत्याग्रही कैदियोंके लिए नहीं है। मेरा संघ चाहता है कि घीकी सुविधा सभी भारतीय कैदियोंको दी जाये, क्योंकि उससे वंचित होनेपर उनकी स्थिति उन वतनी कैदियोंसे भी बदतर हो जाती है, जिनको प्रतिदिन एक औंस चर्बी दी जाती है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-४-१९१०

१४१. पत्र : अखबारोंको

अप्रैल ८, १९१०

महोदय,

कल भारतीयों द्वारा जो दुर्भाग्यपूर्ण उपद्रव किया गया उसकी खबर मैं पढ़ चुका हूँ।" यह मानना सरासर भूल है कि चालू अनाक्रामक प्रतिरोधसे इसका कोई सम्बन्ध है। यह लड़ाई एक खास फिर्केके सदस्योंमें हुई थी। यह फिर्का अपने झगड़ालू स्वभावके लिए १. पत्रका मसविदा अनुमानत: गांधीजीने तैयार किया और यह ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष श्री अ मु० काछलियाके हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था । २. यह " पत्र : जेल-निदेशकको ", पृष्ठ २०५-०७ के उत्तरमें लिखा गया था और ९-४-१९१० के इडियन ओपिनियन में उद्धृत किया गया था । ३. इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था और यह ब्रिटिश भारतीय संघके अप्यक्ष अ० मु० काछलियाके हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था । ४. अभिप्राय कानमियाँके दो विरोधी दलोंके बीच हुई मारपीटसे हैं; देखिए " जोहानिसबर्गकी चिट्ठी ", पृष्ठ २३१ ।