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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि तुम व्हिस्कीकी आठ बोतलें साथ रख लो, क्योंकि अदनसे आगे जानेके बाद तुम्हें उसकी जरूरत पड़ सकती है। एक अन्य सज्जनने धूम्रपानकी सलाह दी, क्योंकि उनका मित्र इंग्लैंडमें धूम्रपानके लिए बाध्य हो गया था। इंग्लैंड होकर आये हुए डाक्टरतक यही कहानी सुनाते थे। मैंने जवाब दिया कि मैं इन सब चीजोंको टालनेकी ज्यादासे-ज्यादा कोशिश करूँगा। परन्तु यदि ये बिलकुल जरूरी ही मालूम हुई तो कह नहीं सकता क्या करूँगा। यों उस समय मांससे मुझे इतनी चिढ़ नहीं थी, जितनी कि आज है। जिन दिनों मैने अपने लिए सोचनेका अधिकार अपने मित्रोंको दे रखा था, उन दिनों मैं छ: या सात बार मांस खानेके चक्करमें पड़ भी चुका था। परन्तु जहाजमें मेरे विचार बदलने लगे थे। मैंने सोचा कि मुझे किसी भी कारणसे मांस नहीं खाना चाहिए। मेरी माँने मुझे यहाँ आनेकी अनुमति देनेके पूर्व मुझसे मांस न खानेका वचन ले लिया था। और कुछ नहीं तो उस वचनसे मैं मांस न खानेको बँधा हुआ था। जहाजके सह-यात्री हमें (मुझे और मेरे साथके मित्रको) सलाह देने लगे कि जरा परीक्षा करके तो देखो।

उनका कहना था कि तुम्हें अदन छोड़नेके बाद उसकी जरूरत पड़ेगी। जब यह गलत सिद्ध हो गया तो फिर बताया गया कि लाल समुद्र पार करनेके बाद जरूरत होगी। और जब यह भी झूठ निकला तो एक यात्रीने कहा--"अभीतक मौसम बहुत उग्र नहीं रहा, परन्तु बिस्केकी खाड़ी में आपको मौत और मांस-मदिरामें से एकको पसन्द करना होगा।" वह संकटका मौका भी सकुशल बीत गया। लंदनमें भी मुझे ऐसी डाँट-फटकारें सुननी पड़ी थीं। महीनोंतक मेरी भेंट किसी अन्नाहारीसे नहीं हुई। मैने एक मित्रके साथ अन्नाहारकी पर्याप्तताके विषयमें बहस करते हुए कई दिन चिन्तामें बिताये। परन्तु उस समय अन्नाहारके पक्षमें मुझे जीव-दयाकी दलीलोंको छोड़कर और किन्हीं दलीलोंका ज्ञान नहीं था। दूसरी ओर, मेरे मित्रने ऐसी बहसोंमें जीवदयाके विचारको तिरस्कारपूर्वक अस्वीकार कर दिया। अतएव मुझे हार खानी पड़ी। आखिरकार मैंने यह कहकर उसका मुंह बन्द किया कि मैं मर जाना पसन्द करूँगा, परन्तु अपनी माताको दिया हुआ वचन नहीं तोड़ेंगा।"छी:!"उसने कहा "बचपन ! घोर अन्धविश्वास ! यहाँ आनेपर भी तुममें इतना अन्धविश्वास कायम है कि तुम इन बेवकूफियोंमें विश्वास करते हो, तब फिर मैं तुम्हारी ज्यादा मदद नहीं कर सकता। काश! तुम इंग्लैंड आये ही न होते !"

बादमें, शायद एक बारको छोड़कर उसने फिर कभी उस बातपर गंभीरतासे जोर नहीं दिया, हालाँकि तबसे उसने कभी मुझे मूर्खसे बेहतर नहीं माना। इसी बीच मुझे याद आया कि एक बार में एक अन्नाहारी जलपान-गृहके पाससे निकला था (वह " पॉरिज बाउल" था)। मैंने एक आदमीसे वहाँका रास्ता पूछा, मगर वहाँ पहुँचनेके बदले, मैने "सेंट्रल" जलपान-गृह देखा और वहाँ जाकर पहली बार थोड़ा-सा दलिया खाया। वह तो मुझे अच्छा नहीं लगा, मगर दूसरे परोसेमें जो ‘पाई" दी गई, वह मुझे पसन्द आई। वहीसे पहले-पहल कुछ अन्नाहारी साहित्य लाया।

१. आटेकी पतली परतोंके बीच कुचले हुए फलोंकी मोटी परत भरकर सेकी गई मीठी रोटी।