ठीक उपयोग रोटी खाने में मदद पहुँचाना है। वैद्यककी दृष्टिसे बहुत ज्यादा दाल खाना अच्छा नहीं माना जाता। यहाँ चावलके बारेमें दो शब्द कह देना अनुपयुक्त न होगा। जैसा कि मैं कह चुका हूँ, चावल खास तौरसे बंगालमें रोटी बनानेके काममें भी आता है। कुछ डाक्टरोंका कहना है कि बंगालियोंके अकसर मधुमेहके शिकार हो जानेका मूल कारण यही है। भारतमें चावलको पौष्टिक आहार कोई नहीं मानता। वह धनियोंका, अर्थात् उन लोगोंका भोजन है, जो काम नहीं करना चाहते। कड़ी मेहनत करनेवाले लोग कभी-कभी ही चावलका उपयोग करते हैं। वैद्य लोग अपने बुखारके मरीजोंको चावलका पथ्य देते है। मैं बुखारका शिकार हुआ हूँ (और, जैसा कि डाक्टर एलिन्सन' कहेंगे, निस्सन्देह आरोग्यके नियमोंका भंग करनेसे) और चावल तथा मुंगके पानीपर रखा गया हूँ। मुझे इतनी शीघ्रतासे स्वास्थ्य-लाभ हुआ था, मानो कोई चमत्कार हो गया हो।
अब हरी शाक-सब्जी। इन्हें बहुत-कुछ दालोंकी तरह ही बनाया जाता है। तेल और मक्खन शाक-सब्जी बनाने में बड़े महत्त्वकी वस्तुएँ होती हैं। बहुधा सब्जियोंके साथ बेसन मिला लिया जाता है। सिर्फ उबली हुई शाक-सब्जी कभी नहीं खाई जाती। मैंने भारतमें कभी लोगोंको उबले हुए आलू खाते नहीं देखा। अकसर अनेक शाक-सब्जियोंको एक-साथ मिला दिया जाता है। कहना अनावश्यक है कि स्वादिष्ठ शाक-सब्जी बनाने में भारत फ्रांसको भारी मात दे सकता है। उनका ठीक उपयोग बहुत-कुछ दाल जैसा ही होता है। महत्त्वमें वे दालके बाद आती है। वे कम-ज्यादा रूपमें विशेष भोजनकी वस्तुएँ मानी जाती है। आमतौरपर लोग उन्हें बीमारियोंका मूल समझते हैं। गरीब लोगोंको हफ्तेमें एक या दो बार मुश्किलसे एक सब्जी मिलती है। वे रोटी-दाल खाकर गुजर करते हैं। कुछ शाक-सब्जियोंमें उत्तम औषधि-गुण होते हैं। एक शाकको 'ताँदलजा' कहा जाता है। उसका स्वाद पालकके स्वादसे बहुत मिलता-जुलता है। वैद्य लोग उन मरीजोंको यह शाक देते है जिनकी आँखें बहुत ज्यादा लाल मिर्च खानेसे बिगड़ जाती है।
इसके बाद फलोंकी बारी आती है। वे मुख्यत: 'फलाहारके दिनों' में खाये जाते हैं। साधारण भोजनके बाद अगर खाये भी गये तो छठे-छमाहे खाये जाते हैं। आम तौरपर लोग उन्हें कभी-कभी खाते हैं। आमके मौसममें आमके रसका बहुत उपयोग किया जाता है। लोग उसे रोटी या चावलके साथ खाते हैं। पके फलोंको हम कभी उबालते या भापमें नहीं पकाते । कच्चे फलोंका, मुख्यत: आमोंका, जब वे खट्टे रहते हैं, अचार-मुरब्बा बनाया जाता है। औषधोपचारकी दृष्टिसे माना जाता है कि ताजे और आमतौरपर खट्टे फलोंकी तासीर बुखार लानेकी होती है। सूखे फल बच्चे बहुत खाते हैं। छुहारा खास तौरसे उल्लेखनीय हैं। हम उन्हें पुष्टिकारक मानते हैं। इसलिए
१.डा० टी० आर० एलिन्सन; लन्दन वेजिटेरियन सोसाइटीके सदस्य, गांधीजी इनके स्वास्थ्य और आरोग्य सम्बन्धी साहित्यसे प्रभावित थे। सन् १९१४ में गांधीजीने प्लूरिसी होनेपर उनका इलाज किया था।
२.धार्मिक उपवासके दिन एकादशी आदि।