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भारत के आहार

तो बिलकुल सही होगा कि भारतवासियोंकी बहुत बड़ी संख्या अन्नाहारी है। उनमें से कुछ तो अपने धर्मके कारण अन्नाहारी है, अन्य लोग अन्नाहारपर निर्वाह करनेको बाध्य हैं, क्योंकि वे इतने गरीब है कि मांस खरीद ही नहीं सकते। इसे बिलकुल स्पष्ट करनेके लिए मैं बता दूं कि भारतमें दसियों लाख लोग केवल एक पैसे अर्थात् एक-तिहाई पेनी--रोजानापर गुजर करते हैं। और इस तरहके दरिद्रताके मारे देशमें इतनी रकममें खाने लायक मांस नहीं मिल सकता। इन गरीबोंको दिनमें सिर्फ एक बार भोजन मिलता है। वह भी होता है बासी रोटी तथा नमकका--और नमक एक ऐसी वस्तु है, जिसपर भारी कर लगा हुआ है। परन्तु भारतीय अन्नाहारी और मांसाहारी इंग्लैंडके अन्नाहारियों तथा मांसाहारियोंसे बिलकुल भिन्न हैं। भारतीय मांसाहारी इंग्लैंडके मांसाहारियोंकी तरह ऐसा नहीं मानते कि वे मांसके बिना मर जायेंगे। जहाँतक मुझे ज्ञान है, भारतीय मांसाहारी मांसको जीवनके लिए आवश्यक वस्तु नहीं, केवल एक विशेष भोजनकी वस्तु मानते हैं। अगर उन्हें उनकी रोटी आमतौरपर भारतमें 'ब्रेड' को 'रोटी' कहते हैं मिल जाये तो मांसके बिना उनका काम मजेमें चल जाता है। परन्तु हमारे अंग्रेज मांसाहारियोंको देखिए। वे मानते है कि मांस उनके लिए 'अनिवार्य' है। रोटी उन्हें मांस खाने में मदद भर करती है। दूसरी ओर, भारतीय मांसाहारी मानता है कि मांस उसे रोटी खाने में मदद करेगा।

हालमें ही एक दिन मैं एक अंग्ज महिलासे आहारके नीति-शास्त्रपर बातें कर रहा था। जब मैं उसे बताने लगा कि वह भी कितनी सरलतासे अन्नाहारी बन सकती है तो वह एकदम बोल उठी :आप कुछ भी कहें, मैं तो मांस खाऊँगी ही। मुझे वह बहुत प्यारा है। और मुझे बिलकुल निश्चय है कि मैं उसके बिना जी नहीं सकती!" मगर, देवीजी! मैने कहा:"मान लीजिए कि आपको बिलकुल अन्नाहारपर रहनेके लिए बाध्य कर दिया जाता है तो फिर आपको क्या करेंगी?" उसने कहा:"ओह ! ऐसा मत कहिए। मैं जानती हूँ मुझे इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। और अगर बाध्य किया जाये तो मुझे बहुत कष्ट होगा।" बेशक, उस महिलाको ऐसा कहनेके लिए कोई दोष नहीं दे सकता। इस समय समाजकी स्थिति ही ऐसी है कि किसी भी मांसाहारीके लिए सरलतासे मांसाहार छोड़ देना असंभव है।

इसी तरह, भारतीय अन्नाहारी भी अंग्रेज अन्नाहारियोंसे बिलकुल भिन्न हैं। भारतीय तो सिर्फ किसी जीवकी या सम्भाव्य जीवकी हत्यासे परहेज करते हैं, इससे आगे वे नहीं जाते। इसीलिए वे अंडा भी नहीं खाते। वे मानते हैं कि अंडा खानेसे उनके जरिए सम्भाव्य जीवकी हत्या होगी। (मुझे कहते खेद है कि मैं लगभग डेढ़ माससे अंडे खा रहा हूँ।) परन्तु उन्हें दूध और मक्खनका सेवन करने में कोई संकोच नहीं होता। वे इन प्राणिज पदार्थों का सेवन फलाहारके दिनोंमें भी करते हैं। फलाहारका दिन प्रत्येक पखवारेमें एक बार आता है। इन दिनोंमें गेहूँ, चावल आदिका आहार वजित होता है। परन्तु दूध और मक्खन यथेष्ठ मात्रामें लिया जा सकता है। जैसा कि हम जानते हैं, यहाँ कुछ अन्नाहारी मक्खन और दूधसे परहेज करते हैं,