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कुछ भारतीय त्योहार-२

पुरोहित--वह सर्वत्र विद्यमान ब्राह्मण--कुछ मंत्र गुनगुनाता है और देवीका आवाहन करता है। पूजाके अन्तमें बिलकुल अधीर बने बच्चे पटाखे सुलगाते हैं और चूंकि यह पूजा सब जगह एक निश्चित समयपर होती है, सड़कें पटाखोंके धड़ाकों, पटपटाहट और सुरसुराहटसे गूंज उठती हैं। बादमें धार्मिक वृत्तिके लोग मन्दिरों में जाते हैं। परन्तु वहाँ भी हर्ष और उल्लास, चकाचौंधकारी प्रकाश और भव्यता ही भव्यता दिखलाई देती है।

दूसरा दिन, अर्थात् नव-वर्ष दिन,' लोगोंसे भेंट करनेका होता है। उस दिन घरोंमें चूल्हे नहीं जलते और लोग पिछले दिन बना हुआ बासी और ठंडा भोजन करते हैं। परन्तु कोई खाऊ व्यक्ति भूखा नहीं रहता, क्योंकि खाने की चीजें इतनी होती है कि उसके बार-बार खानेपर भी बहुत-सा भोजन बच रहता है। खुशहाल लोग हर प्रकारकी शाक-सब्जी और धान्य खरीदते तथा पकाते हैं, और नव-वर्ष दिवस--के उपलक्ष्य में उन सबको चखते हैं।

नव-वर्ष का दूसरा दिन अपेक्षाकृत शान्त होता है। उस दिन चूल्हे फिर जलते हैं। आमतौरपर पिछले दिनके गरिष्ठ भोजनके बाद हलका भोजन ग्रहण किया जाता है। नटखट बच्चोंको छोड़कर अब कोई पटाखे और आतिशबाजियाँ नहीं छोड़ता। रोशनी भी कम हो जाती है। दूसरे दिन दिवाली का उत्सव लगभग समाप्त हो जाता है।

अब हम देखें कि इन उत्सवों का समाजपर क्या असर पड़ता है और इनके द्वारा लोग अनजाने कितने अभीष्ट काम पूरे कर डालते हैं। साधारणतः परिवारके सब लोग उत्सव के दिनों में अपने मुख्य घर में एकत्र होने का प्रयत्न करते हैं। पति अपने कामके कारण भले ही सारे वर्ष दूर रहा हो, इन दिनों वह फिरसे अपनी पत्नीके पास घर पहुँचने का प्रयत्न करता है। पिता लम्बी यात्रा करके भी अपने बच्चोंसे मिलने के लिए आ जाता है। पुत्र यदि दूर पढ़ता होता है तो वह अपने स्कूल से घर आता है और इस तरह हमेशा सारे परिवारका पुनर्मिलन होता रहता है। फिर, जो समर्थ होते हैं वे सब नये कपड़े बनवाते हैं। धनी लोग खास तौरसे इस अवसरके लिए जेवर भी खरीदते हैं। विभिन्न परिवारोंके पुराने-पुराने झगड़े भी रफा-दफा कर लिये जाते हैं। गम्भीरता के साथ इसका प्रयत्न तो कमसे-कम किया ही जाता है। घरों की मरम्मत और सफेदी की जाती है। बँधी पड़ी हुई साज-सज्जा निकाल कर साफ की जाती है और उससे कमरों को सजाया जाता है। यदि कोई पुराना कर्ज हो तो उसे सम्भवतः पटा दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्तिसे नव-वर्षके लिए कोई-न-कोई नई चीज खरीदने की अपेक्षा रखी जाती है। और वह चीज आमतौरपर बर्तन या इसी तरहकी कोई दूसरी चीज होती है। भिक्षा खुले हाथों दी जाती है। जो लोग प्रार्थना करने और मन्दिर जाने में अधिक आस्था नहीं रखते वे भी इन दिनों ये दोनों काम करते हैं।

१.गुजरात में विक्रम संवत्के अनुसार नये वर्ष का आरम्भ कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को माना जाता है।

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