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लन्दन-दैनन्दिनी

गिरजाघर बड़ा सुन्दर बना था। वहाँ हमने कुछ प्रतिष्ठित लोगों के अस्थिपंजर देखे । वे बहुत पुराने थे। जिस साथी ने हमें गिरजाघर दिखाया था उसको हमने एक शिलिंग दिया। गिरजे के ठीक सामने सेंट जॉन की प्रतिमा थी। वहाँ से हम शहर को चले। सड़कें फर्शदार थीं और उनके दोनों ओर लोगों के पैदल चलने के लिए फर्शदार पटरियां बनी थीं। टापू बहुत सुन्दर है। उसमें बहुत-सी शानदार इमारतें हैं। हम शस्त्रास्त्र- भवन देखने गये। यह भवन बड़ी सुन्दरता से सजा हुआ था। वहाँ हमने बहुत पुराने चित्र देखे । उनमें सिर्फ रंग ही भरे हुए नहीं थे, बल्कि कशीदाकारी भी की गई थी। परन्तु कोई अनजान आदमी किसी के बताये बिना जान नहीं सकता कि उनमें कशीदाकारी भी है। वहाँ पुराने योद्धाओं के शस्त्रास्त्र रखे हुए थे। उनमें सभी देखने लायक हैं। मैने तफसील लिख नहीं रखी, इसलिए उन सबके नाम याद नहीं है। परन्तु एक फौजी टोप था, उसका वजन तीस पौंड था। नेपोलियन बोनापार्ट की गाड़ी बड़ी सुन्दर थी। जिस आदमी ने हमें भवन दिखाया उसे ६ पेंस इनाम देकर हम लौट पड़े। गिरजाघर और शस्त्रास्त्र-भवन देखते समय आदर-प्रदर्शन के लिए हमें अपने टोप उतार लेने पड़े थे। फिर हम उस ठगकी दूकान पर गये। उसने जबरन कुछ चीजें हमारे मत्थे मढ़ देने का प्रयत्न किया। मगर हम कोई चीज खरीदने को तैयार नहीं थे। आखिर श्री मजमूदार ने २ शिलिंग ६ पेसके माल्टा के चित्र खरीद लिये। यहाँ ठगने एक दुभाषिये को हमारे साथ कर दिया और वह खुद नहीं आया। दुभाषिया बहुत अच्छा आदमी था। वह हमें संतरा-बाग में ले गया। हमने बाग देखा। मुझे वह बिलकुल पसन्द नहीं आया। मुझे राजकोट का अपना सार्वजनिक पार्क उससे ज्यादा अच्छा लगता है। अगर मुझ कुछ देखने लायक मालूम हुआ तो वह था एक छोटे-से कुंडमें सुनहली और लाल मछलियाँ। वहाँ से हम शहर लौटे और एक होटल में गये। श्री मजमूदार ने कुछ आलू खाये और चाय पी। रास्ते में हमारी भेंट एक भारतीय से हुई। श्री मजमूदार बड़े बेधड़क आदमी थे, इसलिए उन्होंने उस भारतीय से बातें कीं। ज्यादा बातें करने पर मालूम हुआ कि वह माल्टा के एक दुकानदार का भाई है। हम फौरन उस दूकान में गये। श्री मजमूदार ने दूकानदार से खूब बातें की। हमने वहाँ कुछ चीजें खरीदी और दो घंटे उस दूकान में बिता दिये। इससे हम माल्टा का बहुत-सा भाग देख नहीं पाये। हमने एक और गिरजाघर देखा। वह भी बहुत सुन्दर और देखने लायक था। हमें संगीत-नाटक-घर देखना था, पर उसके लिए समय नहीं बचा। उन सज्जन ने श्री मजमूदार को अपने लंदन वासी भाईके नाम अपना कार्ड दिया और हम उनसे विदा लेकर वापस लौटे। लौटते समय वह ठग हमें फिर मिला और ६ बजे शाम को हमारे साथ हो लिया। तटपर पहुँचने पर हम ने उसे, उस अच्छे दुभाषिये को और गाड़ीवान को पैसा दे दिया। नाव वाले से भाड़े के बारे में हमारी कुछ कहा-सुनी हो गई। नतीजा अलबत्ता उसके ही पक्ष में रहा। यहाँ हम खूब ठगे गये।

'क्लाइड जहाज ७ बजे शामको रवाना हुआ। तीन दिनकी यात्रा के बाद में १२ बजे रात को जिब्राल्टर पहुँचे । जहाज सारी रात वहाँ रुका रहा। मेरी जिब्रा-