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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आदमी हो उससे कहिए। या, तुरन्त किसी बड़ी इमारत में, जो आप को दिखलाई देगी ही, घुस जाइए। हाँ, घुसने के पहले इमारतपर लिखा हुआ नाम पढ़ लीजिए और यह निश्चय कर लीजिए कि वह सब के लिए खुली हुई है। यह आप तुरन्त समझ सकेंगे। वहाँ के अरदली को बताइए कि आप कठिनाई में हैं। वह तुरन्त आप को उससे निकलने का रास्ता बतायेगा। अगर आप में काफी हिम्मत हो तो अरदली से कहिए कि वह आपको मुख्य अधिकारी के पास ले जाये और आप उसको सब बात बता दीजिए। बड़ी इमारत से मेरा मतलब टामस कुक, हेनरी किंग या ऐसे ही किन्हीं दूसरे एजेंटों-की इमारत से है। वे आपकी हिफाजत करेंगे। उस समय कंजूसी न करें। अरदली को कुछ दे दें। परन्तु इस जरिये का सहारा तभी लेना चाहिए जब आप अपने-आपको खतरे में समझें। मगर ये इमारतें आप को सिर्फ समुद्र-तटपर ही मिलेंगी। अगर आप तटसे बहुत दूर हों तो पुलिस के आदमी को खोजिए। अगर वह न मिले तो फिर आपकी अन्तरात्मा ही आपकी सबसे अच्छी मार्ग-दर्शक होगी। हम तड़के ब्रिडिसी से रवाना हुए।

लगभग तीन दिन बाद हम माल्टा पहुँचे। जहाज ने कोई दो बजे दुपहर को लंगर डाला। वहाँ वह लगभग चार घंटे ठहरनेवाला था। श्री अब्दुल मजीद हमारे साथ बाहर जानेवाले थे। परन्तु किसी तरह उन्हें बहुत देरी हो गई। मैं जाने को बिलकुल अधीर था। श्री मजमूदार ने कहा, "क्या श्री मजीद की राह न देखें, हम अकेले चले चलें?" मैंने जवाब दिया "जैसा आप ठीक समझें। मुझे कोई आपत्ति नहीं है।'फिर हम दोनों ही चले गये। हमारे लौटनेपर अब्दुल मजीद ने कहा, "मुझे बहुत अफसोस है कि आप लोग चले गये। इस पर श्री मजमूदार ने जवाब दिया, "ये गांधी अधीर हो गये थे। इन्होंने ही मुझसे कहा था कि आपके लिए न ठहरें।" मुझे श्री मजमूदार के इस तरहके बरताव से सचमुच बहुत चोट लगी। मैने उस आरोप को धो डालने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि चुपचाप उसे मंजूर कर लिया। लेकिन मैं जानता हूँ कि यह सारा आरोप अब्दुल मजीद से सिर्फ इतना इशारा करके सरलता से घोया जा सकता था कि अगर श्री मजमूदार सचमुच ही आपके लिए ठहरना चाहते थे तो बेहतर होता कि वे मेरे कहने के अनुसार न करते । और मैं समझता हूँ कि श्री अब्दुल मजीद को विश्वास दिला देने के लिए कि इस काम में मेरा हाथ नहीं था, इतना ही काफी होता। यद्यपि उस समय मेरा ऐसा कुछ इरादा नहीं था। फिर भी, उस दिन से श्री मजमूदार मेरी निगाह में बहुत गिर गये और उनके लिए मेरे दिलमें कोई सच्चा आदर नहीं रहा। इसके अलावा भी दो-तीन बातें हुईं, जिनसे मजमूदार दिन प्रतिदिन मुझे कम भाने लगे।

माल्टा एक दिलचस्प जगह है। वहाँ देखने लायक बहुत-सी चीजें हैं। मगर हमारे पास समय काफी नहीं था। जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, श्री मजमूदार और मैं तटपर गये थे। वहाँ एक बड़ा ठग हमें मिला। हमें बहुत हानि उठानी पड़ी। हम ने नाव का नम्बर ले लिया और शहर देखने के लिए एक गाड़ी की। ठग हमारे साथ था। लगभग आधा घंटा चलने के बाद हम सेंट जॉन गिरजे में पहुंचे।