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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैने खा लिया। श्री मजमूदारने पहली ही रात को जिस खुलेपन से मेरे साथ बरताव किया उससे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने मेरे साथ ऐसे ढंग से बातें की, मानो हमारी पहचान बहुत पुरानी हो। उनके पास काला कोट नहीं था इसलिए ब्यालू के लिए मैंने उन्हें अपना कोट दे दिया। वे मेज पर गये। उस रात से मैं उन्हें बहुत चाहने लगा। उन्होंने अपनी चाबियाँ मुझे सौंप दी और मैंने उसी रात से उन्हें अपने बड़े माई के समान मानना शुरू कर दिया। अदन तक हमारे साथ एक मराठा डाक्टर था। कुल मिलाकर वह एक अच्छा आदमी मालूम होता था। सो, दो दिन तक मैं उन फलों और मिठाइयों पर रहा जो मेरे पास जहाज में थीं। बाद में श्री मजमूदार ने जहाज के कुछ लड़कों के साथ यह प्रबन्ध कर लिया कि वे हमारे लिए भोजन बना दिया करें। मैं तो कभी भी ऐसा प्रबन्ध न कर पाया होता। एक अब्दुल मजीद थे, जो पहले दर्जे में यात्रा कर रहे थे। हम सलून-यात्री थे। छोकरे का बनाया हुआ शाम का भोजन हम खूब स्वाद से खाते थे।

अब थोड़ा-सा जहाज के बारे में। मुझे जहाज की व्यवस्था बहुत पसन्द आई। जब हम कोठरियों या सलूनों में बैठते है तो हमें यह भान नहीं रहता कि ये कोठरियाँ और सलून जहाज के हिस्से है। कभी-कभी हमें जहाज का चलना महसूस ही नहीं होता। मजदूरों और खलासियों का कौशल तो सराहनीय है। जहाज में बाजे थे। पियानो बजाया करता था। ताश, शतरंज और ड्राफ्टकी जोड़ियाँ भी थीं। यूरोपीय यात्री रात को हमेशा ही कोई खेल खेला करते थे। छत यात्रियों के लिए बड़ी राहत की चीज होती है। कोठरियों में बैठे-बैठे अकसर मन ऊब उठता है। छतपर खुली हवा मिलती है। अगर आप निःसंकोची हों और जरूरी लियाकत रखते हों तो साथी यात्रियोंसे मिलजुल सकते हैं और उनसे बातचीत कर सकते हैं। जब आसमान साफ होता है तब दृश्य बड़ा सुहावना होता है। एक रातको, जब चाँदनी छिटकी हुई थी, मैं समुद्रका अवलोकन कर रहा था। चन्द्रका प्रतिबिम्ब पानीपर पड़ रहा था। लहरों के कारण चन्द्रमा ऐसा दिखलाई पड़ता था मानो वह इधर-उधर डोलता हो। एक अँधेरी रातको, जब आसमान साफ था, तारों के प्रतिबिम्ब पानीपर दिखलाई पड़े। उस समय हमारे चारों ओर का दृश्य बड़ा सुन्दर था। पहले-पहल तो मैं अनुमान ही नहीं कर सका कि यह सब क्या है। ऐसा लगता था मानो इतने-सारे हीरे बिखरे हुए हों। परन्तु यह तो मैं जानता ही था कि हीरे तैर नहीं सकते। फिर मैंने सोचा कि ये कोई कीड़े होंगे, जो रातको ही दीख पड़ते हैं। इन्हीं विचारोंमें डूबे हुए मैंने आसमान की ओर देखा और फिर मैं समझा कि ये तो और कुछ नहीं, तारोंके प्रति- बिम्ब हैं। मैं अपनी भूलपर हँस पड़ा। तारों की ये परछाइयाँ आतिशबाजी की कल्पना कराती हैं। जरा कल्पना कीजिए कि आप किसी बँगलेकी छतपर खड़े हुए हैं और अपने सामने छूटनेवाली आतिशबाजियाँ देख रहे हैं। मैं अकसर इस दृश्यका आनन्द लिया करता था।

कुछ दिनोंतक मैंने साथी-यात्रियोंसे बिलकुल बातचीत नहीं की। मैं हमेशा सुबह आठ बजे सोकर उठता था और दाँत साफकर, शौच आदिसे निबट कर स्नान