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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 उपनिवेशकी ओरसे विधानसभा से भावपूर्ण अनुरोध किया कि वह विधेयकको स्वीकार न करे :

यह मुकदमेबाजीको जन्म देना, शत्रुताका भाव पैदा करेगा और स्वयं भारतीयोंके बीच क्षोभ उत्पन्न कर देगा। इसके अलावा, इससे प्रीवी कौंसिल के पास मामले भेजनकी प्रेरणा मिलेगी और सभा के सदस्योंके चुनावपर बुरा असर पड़ेगा। इस विधेयकके साथ जो बड़े प्रश्न जुड़े हुए हैं, उनके खयाल से मैं आशा करता हूँ कि इसका दूसरा वाचन स्वीकार नहीं किया जायेगा।

'नेटाल विटनेस' ने ८ मईको परिस्थितिका सार इस प्रकार दिया है :

अगर विधेयकको जैसा है वैसा ही स्वीकार करके कानूनका रूप दे दिया गया तो उपनिवेश गम्भीर मुकदमेबाजी में फँस जायेगा — हमारी इस चेतावनी-का श्री बिन्स और श्री बेलने समर्थन किया है। और श्री स्मिथको आधी रोटी, जो न-कुछसे अच्छी है, इन दामों बहुत महँगी पड़ेगी। हमारा खयाल है कि सम्राज्ञी कानूनी सलाहकारोंने विधेयकपर विचार किया ही नहीं। हमारे इस खयालका कारण विधेयकसे उठनेवाले अत्यन्त नाजुक प्रश्न हैं। अगर विधेयकके शब्दों में ऐसा परिवर्तन न कर दिया गया जिससे कानूनका आश्रय लेनेकी सम्भावना निकल जाये, तो निश्चय ही उन प्रश्नोंको अदालतमें ले जाया जायेगा? उन प्रश्नों में से कुछ ये हैं: क्या कोई उपनिवेश ऐसा कानून बना सकता है, जो इंग्लैंडके उस नागरिकता कानूनका उल्लंघन करता हो, जिसके अनुसार ब्रिटिश साम्राज्य की समस्त प्रजाको ब्रिटिश नागरिकताका अधिकार मिल जाता है? ब्रिटिश भारतीय ब्रिटिश प्रजा हैं या नहीं? दूसरे शब्दोंमें, विधेयक ब्रिटिश साम्राज्य में ब्रिटिश भारतकी स्थितिके समूचे प्रश्नको उपस्थित कर देता है। क्या १८५८ की घोषणा के बाद उसके द्वारा प्रदान किये गये विशेषाधिकारोंके किसी अंशका हरण करनेके लिए नेटालमें विशेष कानून बनाये जा सकते हैं?

अपने ८ मईके अग्रलेखमें विधेयकके गोलमोल अर्थ और उसकी अस्पष्टतापर खेद प्रकट करनेके बाद 'नेटाल एडवर्टाइजर' ने कहा है :

सच्ची स्थिति यह है, प्रस्तुत विधेयकको एक-एक पंक्ति विवादोंका गुप्त गढ़ है। ये सब विवाद एक दिन खुलकर खेलने लगेंगे। और इनसे भारतीयों और यूरोपीयोंके बीचका मत-सम्बन्धी संघर्ष शायद अधिक कटुताके साथ वर्षोंके लिए स्थायी बन जायेगा।

यह मनहूस सम्भावना — यह सतत आन्दोलन — किसलिए? सिर्फ एक ऐसे खतरेको टालनेके लिए जिसका अस्तित्व है ही नहीं। प्रार्थी सम्राज्ञी सरकारसे प्रार्थना करते हैं कि वह अगर सारे उपनिवेशको नहीं, तो केवल भारतीय समाजको ही सही, इससे बचा ले।