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प्रार्थनापत्र : नेटाल विधानसभाको


नहीं। सदनकी अनुमतिसे मैं उपधारा १ के उपखण्ड के शब्द पढ़कर सुनाता हूँ। उक्त उपखण्ड इस प्रकार है : "सपरिषद गवर्नर-जनरल भारतमन्त्रीको स्वीकृति से समय-समयपर नियम बनायेगा कि गवर्नर-जनरल, गवर्नर या लेफ्टिनेंट गवर्नरको किन शर्तों के अनुसार ऐसी नामजदगियाँ — या कोई एक नामजदगी करनी होगी। यह निर्देश भी वह करेगा कि किस ढंगसे ऐसे नियमों का पालन किया जाये। . . . "

लॉर्ड किम्बलेंने[१] उस उपधाराके बारेमें अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था :

इस चुनाव-सिद्धान्तपर अपना पूरा सन्तोष व्यक्त किये बिना नहीं रह सकता।

लॉर्ड किम्बर्लेके व्यक्त किये हुए विचारोंसे भारत मन्त्री सहमत है; जैसा इस कानूनसे व्यक्त होता है :

वाइसरायको अधिकार होगा कि वह भिन्न-भिन्न विचारोंके प्रतिनिधियोंको इन विधान परिषदों ने चुनाव-कानूनों के अनुसार नामजद होनेके लिए आमन्त्रित करे।

माननीय श्री ग्लैड्स्टनने इसी विषयपर बोलते हुए विधेयक और उसके संशोधनका दूसरा वाचन पेश करनेवाले माननीय उपमन्त्रीके भाषणके स्पष्टीकरणके बाद कहा :

मेरा खयाल है, में बखूबी कह सकता हूँ कि उपमन्त्रीके भाषण में चुनावका तत्त्व उतने ही अर्थ में निहित दिखाई पड़ता है, जितने अर्थ में हमें अपेक्षा करनी चाहिए। . . . स्पष्ट है कि सदन के सामने महान प्रश्न भारतीय शासन में चुनावका तत्त्व दाखिल करनेका है। और यह एक भारी और गहरी दिलचस्पीका विषय है। मैं चाहता हूँ कि उनके पहले कदम खरे हों और चुनावके तत्त्वको कार्यान्वित होनेका जो भी अवसर वे दें, वह वास्तविक हो। इसमें कोई तात्विक मतभेद नहीं है। मैं समझता हूँ कि यद्यपि माननीय सज्जन (श्री कर्जन) ने चुनाव-तत्त्वको सतर्कता के साथ स्वीकार किया है, फिर भी वह स्पष्ट स्वीकार ही है, भिन्न कुछ नहीं।

प्रार्थियोंका निवेदन है कि उपर्युक्त कानूनके अनुसार बनाये और प्रकाशित किये गये नियम ऊपर उद्धृत विचारोंको पूर्णत: चरितार्थ करनेवाले हैं। उदाहरणके लिए, बम्बई विधान परिषदमें १८ नामजद सदस्योंमें से ८ का चुनाव विधान परिषदोंके लिए मताधिकार प्राप्त विभिन्न प्रातिनिधिक संस्थाओं द्वारा हुआ है; या, नियमोंके शब्दोंमें, वे उन संस्थाओंकी 'सिफारिशोंपर नामजद' किये गये हैं। बम्बई निगम (जो स्वयं चुनावके आधारपर बनी हुई संस्था है), सपरिषद गवर्नर द्वारा निर्दिष्ट बम्बई प्रदेशके अन्य नगरपालिकाके निगम और ऊपर कहे अनुसार जिला व स्थानीय बोर्ड, दक्षिणके

 
  1. विदेश मंत्री, १८९४-५।