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८८. प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको

डर्बन, नेटाल
११ मार्च, १८९६

सेवामें
परम माननीय जोजेफ चेम्बरलेन
मुख्य उपनिवेश- मन्त्री
लंदन

नेटालवासी भारतीय समाजके प्रतिनिधि नीचे
हस्ताक्षर करनेवाले भारतीयोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

तारीख २५ फरवरी, १८९६ के नेटाल गवर्नमेंट 'गजट' में जुलूलैंडकी नोंदवेनी बस्तीके सम्बन्धमें कुछ नियम प्रकाशित हुए हैं। वे वहाँ सम्राज्ञीकी सरकारके भारतीय प्रजाजनोंके जमीन प्राप्त करनेके अधिकारोंमें बाधक हैं। जहाँतक बात ऐसी है, हम उन नियमोंके बारेमें सम्राज्ञीकी सरकारके सामने अर्ज करनेकी इजाजत लेते हैं। हमारी अर्ज जुलूलैंडकी एशोवे बस्तीके उसी तरह के नियमोंके सम्बन्धमें भी है।

नियमोंका जो अंश ब्रिटिश भारतीयोंके अधिकारोंमें बाधक होता है, वह निम्नलिखित है :

धारा ४ का अंश — यूरोपीय जन्म या वंशके जो व्यक्ति ऐसे किसी (अर्थात् मकानोंकी जमीनके) नीलाममें बोली बोलने के इच्छुक हों वे नीलामकी तारीख से कम से कम बीस दिन पहले जुलूलैंड-सम्बन्धी कामकाज सचिवको लिखित सूचना दे दें, आदि।

धारा १८ का अंश — सिर्फ यूरोपीय जन्म या वंशके व्यक्तियोंको ही मकानोंकी जमीन कब्जेदार मंजूर किया जायेगा। यह शर्त पूरी न की जानेपर ऐसी कोई भी जमीन फिरसे सरकारके कब्जे में लौट जायेगी, जैसा कि इससे पहलेकी धारामें बताया गया है।

धारा २० का अंश — नोंदवेनी बस्तीमें इस नीलामके जरिये खरीदी हुई जमीन के मालिकोंको ये जमीनें या इनके हिस्से गैर-यूरोपीय जन्म या वंशके लोगोंके हाथ बेचने या उन्हें किरायेपर देनेका हक कभी न होगा। गैर-यूरोपीय लोगोंको इनपर या इनके हिस्सोंपर बिना किराया काबिज होनेकी इजाजत भी वे न दे सकेंगे। अगर कोई खरीदार इन शर्तोंको तोड़ेगा तो ऐसी कोई भी जमीन इन नियमोंकी धारा १७ के अनुसार सरकारके अधिकारमें वापस चली