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८२. प्रार्थनापत्र : नेटालके गवर्नरको

डर्बन
२६ फरवरी, १८९६

सेवामें

परमश्रेष्ठ माननीय सर वॉल्टर फ्रांसिस हेली-हचिन्सन, नाइट कमांडर, गवर्नर
तथा प्रधान सेनापति, तथा उप-नौसेनापति, नेटाल; देशी आबादीके सर्वोच्च
अधिकारी; गवर्नर, जुलूलैंड, आदि; पीटरमै रित्सबर्ग, नेटाल

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले नेटालवासी भारतीय
ब्रिटिश प्रजाजनोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि

२५ फरवरी, १८९६ को 'गवर्नमेंट गजट' में नोंदवेनी, जुलूलैंडके जमीन-बिक्री-सम्बन्धी नियमोंके जो अंश प्रकाशित हुए हैं, उनके सम्बन्धमें नेटालवासी भारतीयोंके प्रतिनिधियोंकी हैसियत से प्रार्थी महानुभावके सामने उपस्थित हो रहे हैं। उक्त अंश ये हैं :

धारा ४ का अंश — यूरोपीय जन्म या वंशके जो व्यक्ति ऐसे किसी नीलाम में बोली बोलनेके इच्छुक हों वे नीलाम की तारीखसे कमसे कम बीस दिन पहले मैरित्सबर्ग में जुलूलैंड-सम्बन्धी कामकाजके सचिवको, या सरकारके सचिव, एशोवे, जुलूलैंडको, लिखित सूचना दे दें। वे जो जमीनें खरीदना चाहते हों, उनका, जहाँतक हो सके, नम्बरोंके जरिये या दूसरे तरीकोंसे विवरण भी दें।<br<>

धारा १८ का अंश — सिर्फ यूरोपीय जन्म या वंशके व्यक्तियोंको ही मकानों की जमीन कब्जेदार मंजूर किया जायेगा। यह शर्त पूरी न की जाने- पर ऐसी कोई भी जमीन फिरसे सरकार के कब्जे में लौट जायेगी, जैसा कि इसके पहलेकी धारामें बताया गया है।

धारा २० — नोंदवेनी बस्तीमें इस नीलामके जरिये खरीदी हुई जमीनके मालिकों को ये जमीनें या इनके हिस्से गैर-यूरोपीय जन्म या वंशके लोगोंके हाथ बेचने या उन्हें किरायपर देनेका हक कभी न होगा। गैर-यूरोपीय लोगोंको इनपर या इनके हिस्सोंपर बिना किराया काबिज होनेकी इजाजत भी वे न दे सकेंगे। अगर कोई खरीदार इन शर्तोंको तोड़ेगा तो ऐसी कोई भी जमीन इन नियमोंकी धारा १७ के अनुसार सरकारके अधिकारमें वापस चली जायेगी।