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भारतीयोंका मताधिकार
मेरा मत है कि केवल वही भारतीय न्यायपूर्वक मताधिकार पानके हकदार हैं, जिन्होंने अपने और अपने परिवारोंके भारत लौटनेके मुफ्त टिकटका पूरा दावा छोड़ दिया है।

ध्यान रखना चाहिए कि ये शब्द कप्तान ग्रेव्जने अपने विभाग द्वारा मान्य किये गये भारतीयों — यानी गिरमिटिया भारतीयोंके बारेमें कहे थे।

तत्कालीन महान्यायवादी और वर्तमान मुख्य न्यायधीशका कथन है :

यह देखा जायेगा कि मैंने जिस कानूनका मसविदा बनाया है, उसमें प्रवर समितिकी सिफारिशोंसे ली हुई वे उपधाराएँ शामिल हैं, जिनमें श्री सांडर्सके पत्र में बतायी गई वैकल्पिक योजनाको कार्यान्वित करनेकी व्यवस्था की गई है। परन्तु विदेशियोंको विशेष रूपसे मताधिकारके अयोग्य ठहरानेके सुझाव मानने योग्य नहीं समझे गये।

उसी पुस्तकके पृष्ठ १४ पर फिर उनका यह कथन है :

जहाँतक उपनिवेश के सामान्य कानूनके अन्दर पूरी तरहसे न आनेवाले प्रत्येक राष्ट्र या जातिके सब लोगोंको मताधिकार प्रयोगसे वंचित कर देनेका सुझाव है, यह स्पष्ट है कि इस कानूनका लक्ष्य उपनिवेशवासी भारतीयों और क्रियोलोंका मताधिकार है, जिसका उपभोग वे इन दिनों कर रहे हैं। जैसा कि मैं पहले ही अपनी रिपोर्ट, क्रम संख्या १२ में कह चुका हूँ, में ऐसे कानूनको न्यायपूर्ण या जरूरी नहीं मान सकता।

इस सरकारी रिपोर्टमें मताधिकारके प्रश्नपर बहुत-सी रोचक सामग्री है। उससे साफ मालूम होता है कि विशेष निर्योग्यताका विषय उस समय उपनिवेशियोंको अप्रिय था।

मताधिकारके सम्बन्धमें हुई विविध सभाओंकी रिपोर्टोंसे मालूम होता है कि वक्ताओंने सदा यह कहा है कि भारतीयोंको इस देशपर कब्जा नहीं करने दिया जायेगा। इसे यूरोपीयोंके खूनसे जीता गया है और यह जो कुछ भी है, यूरोपीयोंके हाथोंसे बना है। उन रिपोर्टोंसे यह भी मालूम होता है कि भारतीयोंको इस उपनिवेशमें बिना इक घुस आनेवाले माना जाता है। पहले कथनके बारेमें मुझे इतना ही कहना है कि अगर भारतीयोंको इसलिए कोई अधिकार नहीं दिये जायेंगे कि उन्होंने इस देशके लिए अपना खून नहीं बहाया, तो यूरोपके दूसरे राज्योंके यूरोपीयोंको भी वे अधिकार नहीं मिलने चाहिए। यह भी कहा जा सकता है कि इंग्लैंडसे बादमें आये हुए प्रवासियोंको भी शुरू-शुरूमें यहाँ आकर बसनेवाले गोरोंके विशेष सुरक्षित अधिकारोंमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। और, निश्चय ही, अगर खून बहाना ही हकदार होनेका कोई मापदण्ड है और अगर ब्रिटिश उपनिवेशी अन्य ब्रिटिश अधिराज्योंको ब्रिटिश साम्राज्यके अंग मानते हैं, तो भारतीयोंने अनेक अवसरोंपर ब्रिटेनके लिए अपना खून बहाया है। चितरालकी लड़ाई सबसे ताजा उदाहरण है।