ध्यान रखना चाहिए कि ये शब्द कप्तान ग्रेव्जने अपने विभाग द्वारा मान्य किये गये भारतीयों — यानी गिरमिटिया भारतीयोंके बारेमें कहे थे।
तत्कालीन महान्यायवादी और वर्तमान मुख्य न्यायधीशका कथन है :
उसी पुस्तकके पृष्ठ १४ पर फिर उनका यह कथन है :
इस सरकारी रिपोर्टमें मताधिकारके प्रश्नपर बहुत-सी रोचक सामग्री है। उससे साफ मालूम होता है कि विशेष निर्योग्यताका विषय उस समय उपनिवेशियोंको अप्रिय था।
मताधिकारके सम्बन्धमें हुई विविध सभाओंकी रिपोर्टोंसे मालूम होता है कि वक्ताओंने सदा यह कहा है कि भारतीयोंको इस देशपर कब्जा नहीं करने दिया जायेगा। इसे यूरोपीयोंके खूनसे जीता गया है और यह जो कुछ भी है, यूरोपीयोंके हाथोंसे बना है। उन रिपोर्टोंसे यह भी मालूम होता है कि भारतीयोंको इस उपनिवेशमें बिना इक घुस आनेवाले माना जाता है। पहले कथनके बारेमें मुझे इतना ही कहना है कि अगर भारतीयोंको इसलिए कोई अधिकार नहीं दिये जायेंगे कि उन्होंने इस देशके लिए अपना खून नहीं बहाया, तो यूरोपके दूसरे राज्योंके यूरोपीयोंको भी वे अधिकार नहीं मिलने चाहिए। यह भी कहा जा सकता है कि इंग्लैंडसे बादमें आये हुए प्रवासियोंको भी शुरू-शुरूमें यहाँ आकर बसनेवाले गोरोंके विशेष सुरक्षित अधिकारोंमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। और, निश्चय ही, अगर खून बहाना ही हकदार होनेका कोई मापदण्ड है और अगर ब्रिटिश उपनिवेशी अन्य ब्रिटिश अधिराज्योंको ब्रिटिश साम्राज्यके अंग मानते हैं, तो भारतीयोंने अनेक अवसरोंपर ब्रिटेनके लिए अपना खून बहाया है। चितरालकी लड़ाई सबसे ताजा उदाहरण है।