पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/३३२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८२

जहाँतक हो सकता है, टालनेका प्रयत्न किया है। इनके द्वारा मैं अपने देशवासियोंकी सफाई देना भी नहीं चाहता। अगर कोई भारतीय शराब पिये या वतनी लोगोंको शराब देता पाया जाये तो मुझसे ज्यादा दुःख किसीको न होगा। मैं पाठकोंको नम्रतापूर्वक आश्वासन देता हूँ कि यहाँ मेरी एकमात्र इच्छा यह दिखाने की है कि इस विशेष आधारपर भारतीयोंके मताधिकारके सम्बन्धमें आपत्ति करना केवल एक छिछली बात है, और यह जाँचपर खरी नहीं उतरती।

आयुक्तोंको दूसरी बातोंके साथ भारतीयोंके मद्यपान और उससे होनेवाले अपराधोंपर खास तौरसे रिपोर्ट देनेका काम सौंपा गया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट के पृष्ठ ४२ और ४३ पर कहा है :

इस विषयपर हमने बहुत-से लोगों की गवाही ली है। उनकी गवाही और हमारे सामने आनेवाले अपराधोंके आँकड़ोंसे यह विश्वास नहीं हुआ कि मद्यपान और उससे होनेवाले अपराधोंका अनुपात समाजके दूसरे लोगोंकी अपेक्षा, जिनके खिलाफ ऐसा कोई प्रतिबन्धक कानून बनानेका प्रस्ताव नहीं किया गया, प्रवासी भारतीयोंमें अधिक है।

हमें कोई शंका नहीं, इस आरोप में बहुत-कुछ सत्य है कि वतनियोंको भारतीयोंके द्वारा आसानीसे ठर्रा शराब मिल जाती है। . . . परन्तु वे शराब बेचनेवाले गोरे लोगोंसे इस विषय में ज्यादा अपराधी हैं — इसमें हमें शंका अवश्य है।

सावधानी से देखने पर पता चला है कि जो लोग भारतीय प्रवासियोंके खिलाफ बतनी लोगोंको शराब बेचनेकी शिकायतें सबसे ज्यादा जोरोंसे करते हैं, वे वही लोग हैं, जो खुद वतनियोंको शराब बेचते हैं; शराब बेचनेवाले भारतीयों की प्रतिद्वन्द्विता के कारण उनके व्यापारमें बाधा पड़ती है और उनका मुनाफा कम होता है।

उपर्युक्त कथन के बाद जो कुछ लिखा गया है, उसको पढ़ना ज्ञानवर्धक है। वह बताता है कि, आयुक्तोंके मतसे, भारतमें भारतीय मद्यपानकी लतसे मुक्त हैं; यहाँ आकर ही वे उसे सीखते हैं। वे कैसे और क्यों नेटालमें शराब पीने लगते हैं, इस प्रश्नका उत्तर में पाठकों पर छोड़ता हूँ।

आयुक्तोंने पृष्ठ ८३ पर कहा है :

हमें विश्वास हो गया है कि नेटालके भारतीय, और खास तौर से स्वतन्त्र भारतीय, अपने देशकी अपेक्षा यहाँ शराबके शिकार ज्यादा होते हैं। फिर भी हमारे सामने ऐसा माननेका कोई सन्तोषजनक प्रमाण नहीं है कि इस उपनिवेशमें रहनेवाली दूसरी जातियोंकी अपेक्षा भारतीयोंमें कट्टर शराबियों और उपद्रवियोंका शतमान अधिक है। ऐसा अंकित कर देनेको हम बाध्य हैं।

सुपरिटेंडेंट अलेक्जैंडरने आयोगके सामने गवाही देते हुए कहा है (पृ° १४६) :

भारतीयों को इस समय एक अपरिहार्य बुराई मानना होगा। मजदूरोंके रूपमें उनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता। हाँ, वे दुकानदार न हों