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जहाँतक हो सकता है, टालनेका प्रयत्न किया है। इनके द्वारा मैं अपने देशवासियोंकी सफाई देना भी नहीं चाहता। अगर कोई भारतीय शराब पिये या वतनी लोगोंको शराब देता पाया जाये तो मुझसे ज्यादा दुःख किसीको न होगा। मैं पाठकोंको नम्रतापूर्वक आश्वासन देता हूँ कि यहाँ मेरी एकमात्र इच्छा यह दिखाने की है कि इस विशेष आधारपर भारतीयोंके मताधिकारके सम्बन्धमें आपत्ति करना केवल एक छिछली बात है, और यह जाँचपर खरी नहीं उतरती।
आयुक्तोंको दूसरी बातोंके साथ भारतीयोंके मद्यपान और उससे होनेवाले अपराधोंपर खास तौरसे रिपोर्ट देनेका काम सौंपा गया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट के पृष्ठ ४२ और ४३ पर कहा है :
हमें कोई शंका नहीं, इस आरोप में बहुत-कुछ सत्य है कि वतनियोंको भारतीयोंके द्वारा आसानीसे ठर्रा शराब मिल जाती है। . . . परन्तु वे शराब बेचनेवाले गोरे लोगोंसे इस विषय में ज्यादा अपराधी हैं — इसमें हमें शंका अवश्य है।
उपर्युक्त कथन के बाद जो कुछ लिखा गया है, उसको पढ़ना ज्ञानवर्धक है। वह बताता है कि, आयुक्तोंके मतसे, भारतमें भारतीय मद्यपानकी लतसे मुक्त हैं; यहाँ आकर ही वे उसे सीखते हैं। वे कैसे और क्यों नेटालमें शराब पीने लगते हैं, इस प्रश्नका उत्तर में पाठकों पर छोड़ता हूँ।
आयुक्तोंने पृष्ठ ८३ पर कहा है :
सुपरिटेंडेंट अलेक्जैंडरने आयोगके सामने गवाही देते हुए कहा है (पृ° १४६) :