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भारतीयोंका मताधिकार

जवाब में कहा जा सकता है कि भारतीयोंको भारतमें उसी तरहका शासन प्राप्त करनेतक ठहरना चाहिए। परन्तु इस जवाबसे काम नहीं चलेगा। इस सिद्धान्तके अनुसार तो यह तर्क भी किया जा सकता है कि नेटाल आनेवाले किसी व्यक्तिको तबतक मताधिकार नहीं मिल सकता जबतक कि वह अपने देशमें उसी तरह और उन्हीं परिस्थितियों में मताधिकारका उपभोग न करता रहा हो — अर्थात्, जबतक उस देशका मताधिकार कानून वही न हो, जो कि नेटालमें है। यदि ऐसा सिद्धान्त सब लोगोंपर लागू किया जाये तो सरलतासे देखा जा सकता है कि इंग्लैंडसे आनेवाले किसी व्यक्तिको भी नेटालमें मताधिकार नहीं मिल सकता। कारण, वहाँका मताधिकार कानून वही नहीं है, जो नेटालमें है। जर्मनी और रूससे आनेवाले लोगोंके लिए तो उसे प्राप्त करनेकी और भी कम गुंजाइश रह जाती है। वहाँ तो कमोबेश निरंकुश शासनका बोलबाला है। इसलिए सच्ची और एकमात्र कसौटी यह नहीं है कि भारतीयोंको भारतमें मताधिकार प्राप्त है या नहीं, बल्कि यह है कि वे प्रातिनिधिक शासनका तत्त्व समझते हैं या नहीं।

परन्तु भारतमें उन्हें मताधिकार प्राप्त है। यह सच है कि वह अत्यन्त सीमित है, फिर भी है तो सही। भारतीयोंकी प्रातिनिधिक शासनको समझने और सराहनेकी योग्यताको विधान परिषदें मान्य करती हैं। वे प्रातिनिधिक संस्थाओंके बारेमें भारतीयों की योग्यताकी स्थायी साक्षी हैं। भारतीय विधान परिषदोंके कुछ सदस्य नामजद और कुछ निर्वाचित होते हैं। भारतमें विधान परिषदोंकी स्थिति नेटालकी पिछली विधान-परिषदकी स्थिति से बहुत भिन्न नहीं है। और भारतीयों पर इन परिषदोंमें प्रवेश करनेपर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। वे यूरोपीयोंके साथ बराबरीकी शर्तोंपर चुनाव लड़ते हैं।

बम्बईकी विधान परिषद के सदस्योंके पिछले चुनावमें एक चुनाव क्षेत्र से एक उम्मीदवार यूरोपीय था और एक भारतीय था।

भारतकी सब विधान परिषदोंमें भारतीय सदस्य मौजूद हैं। चुनावोंमें भारतीय उसी तरह मतदान करते हैं, जैसे कि यूरोपीय। बेशक मताधिकार सीमित है। वह घुमावदार भी है। उदाहरण के लिए, बम्बई निगम विधान परिषद के लिए एक सदस्यका चुनाव करता है और निगमके सदस्योंका चुनाव कर दाता करते हैं, जो अधिकतर भारतीय हैं।

बम्बई नगरपालिकाके चुनावोंमें भारतीय मतदाताओंकी संख्या हजारों है। उपनिवेशवासी भारतीय व्यापारी उन्हीं के वर्गसे या उन्हीं के जैसे किसी दूसरे वर्ग से आये हैं।

फिर, भारतीयोंको बड़े से बड़े पद प्राप्त करनेकी सुविधा है। क्या इससे यह मालूम होता है कि उन्हें प्रातिनिधिक शासनको समझने के अयोग्य माना गया है? एक भारतीय मुख्य न्यायाधीश हुआ है। यह एक ऐसा पद है, जिसका वेतन ६०,००० रुपये या ६,००० पौंड सालाना होता है। अभी हाल में ही एक भारतीयको, जो उसी वर्गका है जिस वर्गके यहाँके अधिकतर व्यापारी हैं, बम्बई उच्च न्यायालयका उप-न्यायाधीश नियुक्त किया गया है।