श्री मुहम्मद सीदत, श्री सुलेमान इब्राहीम और श्री मुहम्मद मीरने न्यूकैसिलमें अथक कार्य किया है। वे और श्री दाऊद आमला अपने खर्चसे चार्ल्सटाउन भी गये । चार्ल्सटाउनके लोगोंने बड़ा शानदार परिणाम दिखाया। एक घंटेके अन्दर सभी उपस्थित लोग सदस्य बन गये। श्री दीनदार, श्री गुलाम रसूल और वांडाने बहुत सहायता की। ब्रिटिश सरकारको भेजे गये मताधिकार प्रार्थनापत्र, ट्रान्सवाल प्रार्थनापत्र और प्रवासी-सम्बन्धी प्रार्थनापत्रके बारेमें प्रवासी भारतीयोंके इंग्लैंड तथा भारत-स्थित मित्रोंको लगभग १,००० पत्र भेजे गये।
प्रवासी कानूनका मंशा गिरमिटको नया करानेसे इनकार करनेवाले लोगोंपर तीन पौंडका कर लगानेका है। उसका जोरदार विरोध किया गया। संसदके दोनों सदनोंको प्रार्थनापत्र दिये गये।
ट्रान्सवाल-प्रार्थनापत्र सीधे कांग्रेसके तत्त्वावधानमें तो नहीं भेजा गया, फिर भी कांग्रेसके कामके सिंहावलोकनमें उसका उल्लेख किये बिना नहीं रहा जा सकता।
कांग्रेसकी भावना या उसके ध्येयके अनुसार दोनों सदनोंके सदस्योंके नाम एक खुला पत्र लिखा गया, और इस उपनिवेश तथा दक्षिण आफ्रिकामें उसका व्यापक वितरण किया गया। अखबारोंने उसकी खूब चर्चा की और फलस्वरूप निजी तौर पर बहुतसे सहानुभूतिपूर्ण पत्र लिखे गये। नेटालके भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें अखबारोंमें समय-समय पर पत्र भी प्रकाशित हुए। भूतपूर्व अध्यक्षने डाकघरमें एक ओर यूरोपीयोंके लिए और दूसरी ओर वतनी लोगों तथा भारतीयोंके लिए निर्धारित पृथक् प्रवेश-द्वारोंके सम्बन्ध में सरकारके साथ पत्र-व्यवहार भी किया।
जो परिणाम निकला है, वह बिलकुल असन्तोषजनक नहीं है। अब तीनों समाजों-के लिए पृथक् प्रवेश-द्वारोंकी व्यवस्था की जायेगी। गिरमिटिया भारतीयोंके बीच भी काम किया गया है। बालासुन्दरम् के साथ उसके मालिकने बहुत बुरा व्यवहार किया था। उसका तबादला श्री एस्क्यूके पास कर दिया गया है।
मोहर्रमके त्योहार तथा कोयलेके बदले लकड़ियाँ दी जानेके मामलेमें रेलवे विभागके गिरमिटिया भारतीयोंकी ओरसे भी कांग्रेसने हस्तक्षेप किया। इस विषय में मजिस्ट्रेटने बहुत सहानुभूति प्रदर्शित की।
तुओहीका मामला भी उल्लेखनीय है। फैसला इस्माइल आमोदके पक्षमें दिया गया, जिनकी टोपी एक सार्वजनिक स्थानपर जबरदस्ती उतार ली गई थी और जिनके साथ दूसरी तरहसे भी दुर्व्यवहार किये गये थे।
विख्यात बेनेट-मुकदमेमें कांग्रेसका बहुत खर्च हुआ। परन्तु हमारा विश्वास है कि वह धन पानीमें नहीं गया। मजिस्ट्रेट के विरुद्ध हम फैसला नहीं करा सकेंगे, यह तो पहले से ही तय था। हम श्री मोरकामके प्रतिकूल परामर्श देनेके बावजूद अदालतमें गये थे। उससे स्थिति बहुत स्पष्ट हो गई है और अब हम जानते हैं कि अगर भविष्यमें इस तरहका कोई मामला खड़ा हो तो हमें ठीक-ठीक क्या करना चाहिए ।
भारतीय पक्षको उपनिवेशके यूरोपीयोंकी तो बहुत सक्रिय सहायता नहीं मिली, फिर भी भारत तथा इंग्लैंडमें बहुत सहानुभूति जाग्रत हो गई है। लंदन 'टाइम्स'