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प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको


हुए हैं। खास तौर से वे शहरों और गाँवोंमें घरेलू नौकरोंका काम कर रहे हैं। . . . स्वतन्त्र भारतीयोंकी आबादी होने के पहले पीटरमै रित्सबर्ग और डर्बन में फल, शाक-सब्जी और मछली बिलकुल नहीं मिलती थी। यूरोपसे कभी कोई ऐसे प्रवासी यहाँ नहीं आये, जिन्होंने बड़े पैमानेपर बागवानी या मछलीके धंधे में रुचि दिखाई हो। और मेरा खयाल है कि अगर भारतीय न हों तो पीटरमै रित्सबर्ग और डर्बनके बाजारोंमें आज भी इन चीजोंकी वैसी ही कमी रहेगी जैसी दस वर्ष पूर्व रहती थी। (पृ° १५५-१५६)

(२६) वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और तत्कालीन महान्यायवादीने यह मत व्यक्त किया था :

भारतीय जिन कानूनों के अनुसार उपनिवेशमें लाये जाते हैं उनकी शर्तोंमें कोई भी परिवर्तन करनेपर मुझे आपत्ति है। मेरे खयालसे, जो भारतीय भारी संख्या में तटवर्ती प्रदेशमें जाकर बसे, उन्होंने बहुत बड़ी मात्रामें वह कमी पूरी की है, जो यूरोपीयोंसे पूरी नहीं हो सकी थी। जो जमीन उनके न होनेपर बंजर पड़ी रहती उसे उन्होंने जोता है और ऐसी फसलें पैदा की हैं, जो उपनिवेश वासियों के सच्चे लाभकी हैं। जो बहुत-से लोग मुफ्त वापसी टिकटका फायदा उठाकर भारत वापस नहीं गये वे विश्वस्त और अच्छे घरेलू नौकर साबित हुए हैं। (पृ° ३२७)

(२७) उस बृहद् रिपोर्टसे और भी अनेक उद्धरण देकर बताया जा सकता है कि इस व्यवस्थाके बारेमें उपनिवेशके सबसे बड़े लोगोंके विचार क्या थे। (२८) प्रार्थी श्री बिन्स और श्री मेसनकी रिपोर्टके निम्नलिखित अंशपर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं :

यद्यपि अनुमति बार-बार माँगी गई है, फिर भी जहाँ-कहीं भी कुली गये हैं, भारत सरकारने अबतक इकरारनामा दुहरानेकी अनुमति किसी देशको नहीं दी है। गिरमिटकी अवधि समाप्त होनेपर अनिवार्य वापसीकी शर्त भी किसी मामलेमें मंजूर नहीं की गई।

(२९) कानूनका समर्थन करते हुए उपनिवेशमें कहा गया है कि जहाँ दोनों पक्ष स्वेच्छा से किसी बातको मंजूर करते हैं वहाँ अन्याय हो ही नहीं सकता। और भारतीयोंको नेटाल आनेके पहले मालूम ही रहेगा कि उन्हें किन शर्तोंपर यहाँ आना है। विधान परिषद और विधानसभाको भेजे गये प्रार्थनापत्र में इस विषयकी विवेचनाकी गई है। प्रार्थी फिरसे यह बात दोहरानेकी इजाजत लेते हैं कि जब इकरार करनेवाले पक्षोंकी स्थिति समान नहीं है, तब यह तर्क बिलकुल ही लागू नहीं होता। जो भारतीय, श्री सांडर्स के शब्दोंमें, "भुखमरीसे भाग निकलनेके लिए" इकरारमें बँधता है, उसे स्वतन्त्र नहीं कहा जा सकता।