(५) अब, प्रार्थी नम्रतापूर्वक किन्तु दृढ़ताके साथ निवेदन करते हैं कि गिरमिट की अवधिको पाँच वर्षसे बढ़ाकर लगभग अनिश्चित कालतक की कर देना अत्यन्त अन्यायपूर्ण है। वह इसलिए खास तौरसे अन्यायपूर्ण है कि जहाँतक गिरमिटिया भारतीयों द्वारा संरक्षित या प्रभावित उद्योगोंका सम्बन्ध है, इस प्रकारका कानून नितान्त अनावश्यक है।
(६) इन उपधाराओंका आविर्भाव १८९४ में नेटाल सरकार द्वारा भारत भेजे गये आयोग और श्री बिन्स तथा श्री मेसनकी रिपोर्टके कारण हुआ है। वह आयोग इन दो प्रतिनिधियोंका बना था। रिपोर्टमें इस प्रकारका कानून बनानेके लिए जो कारण बताये गये हैं वे "प्रवासी संरक्षककी वार्षिक रिपोर्ट १८९४" के पृष्ठ २० और २१ पर दिये हैं। प्रार्थी आयुक्तोंकी रिपोर्टका निम्नलिखित अंश उद्धृत करनेकी इजाजत लेते हैं :
(७) इस प्रकार, इस विशेष व्यवस्थाके कारण सिर्फ राजनीतिक हैं। सही बात तो यह है कि बहुत ज्यादा भीड़भाड़ हो जानेका कोई प्रश्न ही नहीं है। एक नये बसे हुए देशमें, जहाँ विशाल भूमिक्षेत्र अभी जनहीन और बंजर पड़े हैं, ऐसा कोई प्रश्न हो ही नहीं सकता।
(८) उसी रिपोर्टमें आयुक्तने आगे कहा है :