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प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको
अनुसार, जिनका उल्लेख उस कानूनके खंड ११में हुआ है, भारतीय प्रवासी जिन इकरारनामोंपर हस्ताक्षर करेंगे उनमें गिरमिटिया भारतीयोंकी ओरसे निम्नलिखित शब्दों में एक प्रतिज्ञा होगी :
हम यह भी मंजूर करते हैं कि अवधि समाप्त होने या अन्य तरीकेसे इकरारनामा खत्म होने के बाद हम या तो भारत लौटेंगे या समय-समयपर किये जानेवाले इकरारनामेके अनुसार नेटालमें रहेंगे। शर्तें ये हैं कि नई प्रतिज्ञाबद्ध सेवाकी हरएक अवधि दो वर्षकी होगी और इस इकरारनामे में वेतनको जो व्यवस्था की गई है उसके बाद प्रत्येक वर्षका मासिक वेतन इस प्रकार होगा — पहले वर्ष १६ शिलिंग, दूसरे वर्ष १७ शिलिंग, तीसरे वर्ष १८ शिलिंग, चौथे वर्ष १९ शिलिंग और पाँचवें तथा बादके हर वर्ष २० शिलिंग मासिक।

उपधारा ६ इस प्रकार है :

इस कानून के खंड २ में दी हुई प्रतिज्ञा करनेवाले प्रत्येक गिरमिटिया भारतीयको, जो नेटालमें फिरसे मजदूरीका इकरारनामा लिखने या भारत लौटने से इनकार करे, या उसकी उपेक्षा करे, या उसमें चूक जाये, हर वर्ष उपनिवेश में रहने के लिए एक परवाना निकालना होगा जो उसे अपने जिलेके मजिस्ट्रेट से प्राप्त होगा। उस परवानेके लिए उसे तीन पौंड वार्षिक शुल्क देना होगा। यह शुल्क कोई भी 'क्लार्क ऑफ पीस' या तदर्थ नियुक्त अधिकारी सरसरी कार्रवाई द्वारा वसूल कर सकता है।

ऊपर उद्धृत उपधारा २ में उल्लिखित अनुसूची 'ख' का मजदूरीकी अवधि सम्बन्धी अंश यह है :

हम . . . से नेटाल जानेवाले निम्न हस्ताक्षरकर्त्ता प्रवासी प्रतिज्ञा करते हैं कि नेटाल स्थित भारतीय प्रवासी-संरक्षक हमें जिस मालिकके पास भेजेगा उसका काम हम करेंगे। शर्त यह है कि हमें नीचे अपने-अपने नामके सामने लिखी हुई मजदूरी और दूसरा अतिरिक्त खर्च हर माह नकद दिया जायेगा।

(४) ऊपर दिये गये अंशोंसे मालूम होगा कि यदि विचाराधीन विधेयक कानून बन गया तो अगर कोई गिरमिटिया भारतीय अपनी गिरमिटिया सेवाके पहले पाँच वर्षोंके बाद उपनिवेशमें बसना चाहेगा तो उसे सदा गिरमिटिया बनकर रहना होगा, या तीन पौंड वार्षिक कर देना होगा। प्राथियोंने 'कर' शब्दका उपयोग जानबूझकर किया है, क्योंकि कमेटीकी चर्चाके स्तरसे गुजरनेके पहले मूल विधेयकमें इसी शब्दका उपयोग किया गया था। प्रार्थियोंका निवेदन है कि सिर्फ नाम बदल देनेसे — कर न कहकर परवाना कह देनेसे — विधेयक कम आघातकारी नहीं हो जाता; बल्कि उससे विधेयक बनानेवालोंके इस ज्ञानका परिचय मिलता है कि उपनिवेशमें रहनेवाले एक खास वर्गके लोगोंपर एक खास व्यक्ति-कर लगाना ब्रिटिश न्याय-भावनाके बिलकुल विपरीत है।

 

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