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अन्नाहारी मिशनरियोंकी टोली

यह कह देना अनुचित न होगा कि यद्यपि इन प्रवासियोंमें करीब-करीब सभी जर्मन हैं, वे देशी लोगोंको जर्मन भाषा सिखानेका प्रयत्न कभी नहीं करते। यह उन उदात्त प्रवासियोंकी उच्चाशयताका परिचायक है। ये सब देशी लोग गोरोंके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं।

बहनोंके विहारमें इस्तिरी करने, सिलाई, बुनाई और तिनकोंके टोप बनाने के विभाग हैं। वहाँ देशी बालिकाओंको स्वच्छ वस्त्र पहने परिश्रमके साथ काम करते देखा जा सकता है।

मठसे लगभग दो मीलपर छपाईका विभाग और एक जल-प्रपातसे चलनेवाली आटा-चक्की है। इमारत बहुत बड़ी है। वहाँ एक तेल निकालने की मशीन — घानी — भी है, जिसमें मूंगफलीका तेल निकाला जाता है कहना आवश्यक नहीं कि उपर्युक्त कारखानोंसे आश्रमवासियोंकी अधिकतर जरूरतें पूरी हो जाती हैं।

आश्रमवासी गरम आबहवामें होनेवाले अनेक प्रकारके फल अपने बागोंमें पैदा कर लेते हैं और आश्रम लगभग आत्मनिर्भर है।

वे अपने आसपास रहनेवाले देशी लोगोंसे प्रेम करते हैं और उनका आदर करते हैं। बदलेमें उन्हें भी देशी लोगोंका प्रेम और आदर प्राप्त होता है। आम तौरपर इन्हीं में से उन्हें ईसाई धर्म स्वीकार करनेवाले लोग मिलते हैं।

आश्रमका सबसे मुख्य पहलू यह है कि उसमें धर्म हर जगह दिखलाई पड़ता है। प्रत्येक कमरेमें एक क्रूस है और प्रवेश-द्वारपर पवित्र जलकी एक छोटी-सी टंकी है। प्रत्येक आश्रमवासी भक्तिभाव से इस जलको अपनी पलकों, माथे और छाती पर लगाता है। आटा चक्कीको यदि शीघ्रतासे चलकर जायें तो भी कोई न कोई चीज सूलीका स्मरण करा ही देती है। वहाँ जानेके लिए एक बड़ी सुन्दर पगडण्डी है। उसके एक ओर भव्य घाटी है, जिससे मधुरतम गान करता हुआ एक छोटा-सा झरना बहता है; दूसरी ओर छोटी-छोटी चट्टानें हैं, जिनपर सूलीके दृश्योंका स्मरण करानेवाले तरह-तरहके खुदाव कर दिये गये हैं। पूरीकी-पूरी घाटी वनस्पतियोंके हरे कालीनसे छाई हुई है, जिसमें जहाँ-तहाँ सुन्दर-सुन्दर वृक्षोंके नगीने जड़े हैं। इससे अधिक मनोहर सैर या दृश्यावलीकी भली-भाँति कल्पना करना भी संभव नहीं है। ऐसे स्थानपर किये गये खुदाव मनपर अच्छा प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकते। वे ऐसे नियत अन्तरपर किये गये हैं कि जैसे ही आदमी एक खुदावपर अपने विचार समाप्त करता है वैसे ही दूसरा खुदाव उसकी दृष्टिके सामने आ जाता है।

इस प्रकार उस रास्तेसे चलनेवालेको किन्हीं भी दूसरे विचारों या बाहरी शोर-गुलकी बाधासे मुक्त रहकर शांतिपूर्ण ध्यान करनेका अभ्यास हो जाता है। कुछ खुदाव ये हैं : "प्रभु ईशु पहली बार गिरे", "प्रभु ईशु दूसरी बार गिरे", साइमन क्रूसको ले जाता है", "प्रभु ईशुको क्रूसमें कीलोंसे जड़ दिया गया", प्रभु ईशुको उनकी माँकी गोदमें लिटा दिया गया", आदि।

हाँ, देशी लोग भी मुख्यतः अन्नाहारी हैं। यद्यपि उन्हें मांस खानेकी मनाही नहीं है, फिर भी आश्रम में उन्हें वह नहीं दिया जाता।