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६२. प्रार्थनापत्र : लॉर्ड एलगिनको[१]

[५ मई, १८९५ से पूर्वं]

सेवामें
परमश्रेष्ठ परममाननीय लॉर्ड एलगिन, पी° सी° जी° एम° एस° आई°,
जी° एम° आई° ई°, आदि
वाइसराय और गवर्नर जनरल, भारत
कलकत्ता

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यवासी
भारतीयोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

प्रार्थी दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके भारतीय समाजके प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे इस प्रार्थनापत्र द्वारा सम्राज्ञीके दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यवासी ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंके सम्बन्धमें निवेदन करनेकी इजाजत लेते हैं।

प्रार्थी यहाँ उन तथ्यों और तर्कोंको दुहराना नहीं चाहते जो उन्होंने परम माननीय उपनिवेश मन्त्रीके नाम एक हजारसे अधिक व्यक्तियोंके हस्ताक्षरसे भेजे गये इसी प्रकारके एक प्रार्थनापत्रमें[२] दिये हैं। बदले में, उस प्रार्थनापत्रकी और उसके सहपत्रोंकी एक नकल इसके साथ नत्थी करके प्रार्थी अनुरोध करते हैं कि महानुभाव उसे देख लें।

पूर्ण विचार-विमर्शके बाद आपके प्रार्थी इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि महानुभाव भारतमें सम्राज्ञीके प्रतिनिधि और समस्त भारतके वास्तविक शासक हैं; अतएव यदि हम महानुभावके सीधे संरक्षणकी याचना न करें और यदि महानुभाव ऐसा संरक्षण देनेकी कृपा न करें तो दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके ही नहीं, समस्त दक्षिण आफ्रिका के भारतीयोंकी स्थिति अत्यन्त निःसहाय हो जायेगी और दक्षिण आफ्रिकाके उद्यमी भारतीयोंको, बिना किसी अपराधके, जबरन दक्षिण आफ्रिकाके देशी लोगोंके स्तर पर गिरा दिया जायेगा।

मान लीजिए, कोई बुद्धिमान अजनबी दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यमें आता है। उसे बताया जाता है कि इस राज्यमें एक वर्ग ऐसे लोगोंका है जो अचल सम्पत्ति नहीं रख सकते; बिना परवानोंके राज्य में घूम-फिर नहीं सकते; व्यापारके लिए राज्यमें प्रवेश करते ही सिर्फ उन्हींको साढ़े तीन पौंडका एक विशेष पंजीकरण शुल्क देना पड़ता है; वे व्यापार करनेके परवाने नहीं पा सकते; उन्हें शीघ्र ही शहरोंसे

 
  1. यह प्रार्थनापत्र सर जेकब्स डी' वेटने ३० मई, १८९५ को पिछले शीर्षकके साथ केपटाउन स्थित उच्चायुक्त के पास भेजा था।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।