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प्रार्थनापत्र : लॉर्ड रिपनको
उन आदरास्पद और कठोर परिश्रम करनेवाले लोगोंको स्थितिको इतना गलत समझा गया है कि उनकी राष्ट्रीयताकी ही उपेक्षा हो गई है। उनपर एक ऐसा बुरा नाम जड़ दिया गया है, जो उन्हें उनके सहजीवियोंकी वृष्टिमें नितान्त निम्न स्तरपर रखनेवाला है। फिर, यदि उपर्युक्त याददेहानियोंके होते हुए कोई क्षणभरके लिए उनकी चर्चा छेड़ दे तो शायद वह क्षमा किया जानेकी न्यायपूर्वक अपेक्षा कर सकता है। उनकी आर्थिक प्रवृत्तियोंकी वृष्टिसे भी, जिनकी सफलतापर उनको बदनाम करनेवाले अनेक लोग ईर्ष्या करेंगे, वह आन्दोलन समझमें नहीं आता। वह तो प्रवृत्तियाँ चलानेवालोंको अर्धसभ्य देशी लोगों की कोटिमें ढकेल देगा, उन्हें पृथक् बस्तियोंमें ही रहनेके लिए बाध्य कर देगा और काफिरोंपर लागू किये गये कानूनोंसे भी सख्त कानूनोंके प्रतिबन्ध में रखेगा। ट्रान्सवाल और इस उपनिवेशमें यह धारणा फैली हुई है कि शान्त और नितान्त निर्दोष 'अरब' दूकानदार और उतने ही निर्दोष वे भारतीय, जो अपने बढ़िया मालके गट्ठर पीठपर लादे घर-घर घूमते हैं, 'कुली' हैं। इसका कारण जिस जातिमें वे उत्पन्न हुए हैं उसके बारेमें हमारा अवमानकारी अज्ञान है। अगर कोई सोचे कि काव्यमय तथा रहस्यपूर्ण पुराणोंवाले ब्राह्मण धर्मकी कल्पनाने 'कुली व्यापारियों' की भूमिमें ही जन्म पाया था, चौबीस शताब्दियों के पूर्व उसी भूमिमें देवतुल्य बुद्धने आत्मत्यागके महान् सिद्धान्तका प्रचार और पालन किया था और हम जो भाषा बोलते हैं उसके मौलिक तत्त्वोंकी खोजें उसी प्राचीन देशके पर्वतों और मैदानोंमें हुई थीं, तो वह अफसोस किये बिना नहीं रह सकता कि उस जातिके वंशजोंके साथ तत्त्वशून्य बर्बरों और बाह्य जगत्के अज्ञानमें डूबे हुए लोगोंकी सन्तानोंके तुल्य बरताव किया जाता है। जिन लोगोंने भारतीय व्यापारियोंके साथ बातचीत करनेमें कुछ मिनट भी बिताये हैं, वे यह देखकर शायद आश्चर्य में पड़े होंगे कि वे तो विद्वानों और सज्जनोंसे बातें कर रहे हैं। . . . और उसी ज्ञानभूमिकी सन्तानको आज 'कुली' कहकर अपमानित किया जा रहा है और उनके साथ काफिरोंका-सा व्यवहार हो रहा है।
अब तो ऐसा समय आ गया है कि जो लोग भारतीय व्यापारियोंके विरुद्ध चीख-पुकार मचाते हैं, वे उन्हें बतायें कि वे कौन हैं और क्या हैं। उनके घोरतम निन्दकोंमें अनेक ब्रिटिश प्रजाजन हैं, जो एक शानदार समाजकी सदस्यता के अधिकारों तथा विशेषाधिकारोंका उपभोग कर रहे हैं। अन्यायसे घृणा और औचित्यले प्रेम उनका जन्मसिद्ध गुण है और जब उनका मामला होता है तब चाहे अपनी सरकारके प्रति हो, चाहे विदेशी सरकारके, वे अपने ही एक विशेष तरीकेसे अपने अधिकारों और स्वतन्त्रताओंका आग्रह भी रखते हैं। शायद यह उन्हें कभी सूझा ही नहीं कि भारतीय व्यापारी भी ब्रिटिश