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अठारह

प्रमाण भी मौजूद है। उसपर गांघीजीने नहीं, दूसरोंने हस्ताक्षर किये हैं, परन्तु गांधीजीने अपनी 'आत्मकथा' (गुजराती, १९५२, पृष्ठ १४२) में कहा है: "इस प्रार्थनापत्रके पीछे मैंने बहुत मेहनत उठाई। इस विषयका जो-जो साहित्य मेरे हाथ लगा वह सब मैंने पढ़ डाला।"

यद्यपि गांधीजी १८९४ से कुछ वर्षोतक नेटालमें रहे थे, फिर भी दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यसे, जिसे बादमें ट्रान्सवाल कहा जाने लगा, भेजें गये कुछ प्रार्थनापत्र मी इस खण्डमें शामिल कर दिये गये हैं। इन्हें गांधीजीके लिखे हुए माननेका कारण यह है कि उन्होंने अपने दक्षिण आफ्रिकावासका पहला वर्ष — अर्थात्‌ १८९३ और १८९४ का कुछ-कुछ भाग — द्वास्सवालकी राजधानी प्रिटोरियामें बिताया था और उन्हें वहाँके भारतीयों तथा उनकी समस्याओंका अच्छा परिचय हो गया था। उन्होंने अपनी 'आत्मकथा' (गुजराती, १९५२, पृष्ठ १२६) में लिखा है: "अब प्रिटोरियामें शायद ही कोई भारतीय ऐसा रहा होगा, जिसे मैं जानता न होऊँ, या जिसकी परिस्थितिसे में परिचित न होऊँ।" उन्होंने यह भी कहा है (आत्मकथा, गुजराती, पृष्ठ १२७): "मैंने सुझाया कि एक मण्डल स्थापित करके मारतीयोंके कष्टोंका इलाज अधिकारियोंसे मिलकर, अर्जी आदि देकर करना चाहिए; और यह वांदा भी किया कि मुझे जितना समय मिलेगा उतना बिना किसी वेतनके इस कार्यके छिए दूँगा।" इसलिए, यद्यपि गांधीजी इसके बाद नेटालमें रहे फिर भी बिलकुल सम्भव है कि ट्रान्सवालके भारतीयोंने अपने प्रार्थनापत्र उनसे ही लिखवाये हों। वे नेटालमें रहे हों या ट्रास्सवाल-में, सारे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी समस्याओंमें उत्तकी गहरी दिलचस्पी थी; और उन्होंने ऑरेंज फ्री स्टेट तथा केप प्रदेश जैसे दूसरे हिस्सोंके और, यहाँतक कि रोडेशियाके भी भारतीयोंकी समस्याओंके बारेमें लगातार लिखा है, हालाँकि वे इन प्रदेशोंमं रहे कभी नहीं।

तथापि, यह कह देना जरूरी है कि भारतीयोंके भेजें सभी प्रार्थनापत्र गांधीजीके लिखे हुए नहीं हैं। कुछ प्रार्थनापत्र तो वे गांधीजीके दक्षिण आफ्रिका पहुँचनेके पहले ही भेज चुके थे। स्पष्ट है कि ये प्रार्थनापत्र यूरोपीय वकीलोंने पेशेके तौरपर उनके लिए लिख दिये होंगे। ऐसा होते हुए भी, बिकूकुल सम्मव है कि जेसे ही गांधीजी उनकी समस्याओंमें गहरी दिलचस्पीके साथ रंगभूमिपर आये वैसे ही मारतीयोंने अपने सारे प्रार्थनापत्र उनसे ही लिखवाने शुरू कर दिये हों। श्री हेनरी एस° एल° पोछक और श्री छगनलाल गांधीका भी यही मत है। ये दोनों महानुभाव सन्‌ १९०४ के आसपाससे दक्षिण आफ्रिकामें रहकर गांधीजीके साथ काम करते थे। जितने दिन गांधीजी बहाँ रहे, ये भी उनके साथ ही थे।

दो कागजात और भी हैं, जिन्हें गांधीजीके हस्ताक्षर न होनेपर भी इस खण्डमें शामिल कर दिया गया है। वे हैं — नेंटाल भारतीय कांग्रेसका संविधान और उसकी पहली कार्यवाही। नेंटाल भारतीय कांग्रेसकी स्थापना गांधीजीने ही की थी और वे उसके पहले मंत्री थें। उसके संविधानका मसविदा गांधीजीके ही हस्ताक्षरोंमें लिखा प्राप्त हुआ है।