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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दृष्टिसे यूरोपीयोंके मकानोंसे किसी तरह ओछे नहीं पड़ते। (परिशिष्ट क, ख, ग)। प्रिटोरिया में प्रार्थियोंके मकानों और वस्तु-भंडारोंके अगल-बगल यूरोपीयोंके मकान और वस्तु-भंडार भी मौजूद हैं। अतएव हम चुनौती देते हैं कि हमारे मकानोंकी उन यूरोपीयोंके मकानोंसे तुलना की जाये जो हमारे पड़ोसमें रहते हैं।

(१४) निम्नलिखित बेमाँगा प्रमाणपत्र अपनी बात आप ही कहेगा। १६ अक्तूबर, १८८५ को स्टैंडर्ड बैंकके तत्कालीन संयुक्त प्रबंधक श्री मिचेलने उच्चायुक्त सर एच° रॉबिन्सनको लिखा था :

अगर मैं यह कहूँ तो अनुचित न माना जायेगा कि जहाँतक मैं जानता हूँ, वे (भारतीय व्यापारी) सबके सब हर तरहसे व्यवस्थित, उद्योगी और इज्जतदार हैं। उनमें से कुछ ऊँची स्थिति और धनवान व्यापारी हैं। मॉरीशस, बम्बई तथा दूसरे स्थानोंमें उनकी बड़ी-बड़ी पेढ़ियाँ हैं (ग्रीन बुक १, पृ° ३७)।

(१५) लगभग ३५ सुविख्यात यूरोपीय पेढ़ियाँ

स्पष्ट घोषणा करती हैं कि उपर्युक्त भारतीय व्यापारी, जिनमें से अधिकांश बम्बई से आये हैं, अपने व्यापार और रहनेके स्थानोंको स्वच्छ तथा स्वास्थ्य-नियमों के अनुकूल रखते हैं। वास्तवमें वे उन्हें उतनी ही अच्छी हालत में रखते हैं, जितनी अच्छी हालत में यूरोपीय रखते हैं। (परिशिष्ट घ)

(१६) फिर भी, यह सही है कि ये बातें समाचारपत्रोंमें प्रकशित नहीं होतीं। समाचारपत्र मानते हैं कि आपके प्रार्थी "गन्दे कीड़े" हैं। फोक्सराङको जो अर्जियाँ भेजी जाती हैं उनमें भी यही कहा जाता है। कारण स्पष्ट हैं। इन सब बहसों में भाग लेने या अपने बारेमें की जानेवाली तमाम गलतबयानियोंसे परिचित रहने योग्य अंग्रेजी न जाननेके कारण, प्रार्थी हमेशा ऐसे प्रचारका खंडन करनेकी स्थितिमें नहीं होते। वे तभी यूरोपीय पेढ़ियों और डाक्टरोंके पास अपनी स्वच्छता-सम्बन्धी आदतोंके बारेमें उनका अभिप्राय माँगने गये, जबकि उन्होंने देखा कि उनका अस्तित्व ही खतरे में है।

(१७) परन्तु प्रार्थियोंको भी अपने बारेमें स्वयं निवेदन करनेका अधिकार तो है ही। वे समझ-बूझकर और निस्संकोच कह सकते हैं कि सामूहिक रूपमें उनके मकान भले ही भद्दे हों, और निस्सन्देह वे सजे-धजे तो हैं ही नहीं, फिर भी सफाईकी दृष्टिसे वे यूरोपीयोंके मकानोंकी अपेक्षा किसी तरह ओछे नहीं हैं। और जहाँतक उनकी व्यक्तिगत आदतोंका सम्वन्ध है, वे पूरे विश्वासके साथ कह सकते हैं कि वे ट्रान्सवाल-वासी यूरोपीयोंकी अपेक्षा, जिनके साथ उनका बार-बार सम्बन्ध आता है, ज्यादा पानी काममें लाते हैं, और ज्यादा बार स्नान करते हैं। परन्तु, प्रार्थियोंकी यह इच्छा जरा भी नहीं कि वे तुलना करके अपने-आपको अपने यूरोपीय भाइयोंसे श्रेष्ठ सिद्ध करनेका प्रयत्न करें। यहाँ उन्हें जो यह तुलनाका मार्ग अंगीकार करना पड़ा है उसका एकमात्र कारण परिस्थितियोंकी मजबूरी है।