पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/२१४

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खुली चिट्ठी इनके विचारोको पूरी तरह अगीकार न करनेपर मी, वह एक ज्यादा नेक आदमी बन जायेगा। अगर कोई इस विषयमें मेरे साथ बातचीत करना चाहे तो मुझे इतमीनानके साथ विचार-विनिमय करनेमें बहुत प्रसन्नता होगी। ऐसे जो लोग मेरे साथ व्यक्तिगत रूपसे पत्र-व्यवहार करेगे उन्हे मैं धन्यवाद ही दूंगा। यह कहना जरूरी नहीं है कि पुस्तकोकी बिक्री आर्थिक लाभके लिए नहीं की जा रही है। यदि यूनियनके अध्यक्ष श्री मेटलैंड या यूनियनके स्थानिक एजेंटके लिए ये पुस्तके मुफ्त बाँट देना सम्भव होता, तो वे खुशीके साथ यही करते। कई लोगोको ये लागत-मूल्यसे भी कमपर दी गई है। कुछ लोगोको मुफ्त भी दे दी गई है। बिना मूल्यके व्यवस्थित रूपसे वितरण करना सम्भव नही हो सका। कुछ लोगोको ये पढ़नेके लिए खुशीसे दे दी जायेंगी। मै ग्रथकर्ताओंके नाम स्वर्गीय एवे कॉन्स्टटके पत्रसे एक उद्धरणके साथ इसे समाप्त करूंगा-"मानव-जाति हमेशासे और हर जगह खुदसे ये तीन परम महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछतो आई है: हम कहाँसे आये है, हम क्या है, हम कहां जायेंगे? अब 'परफैक्ट वे' में इन प्रश्नोका विस्तृत उत्तर प्राप्त हो गया है, जो पूर्ण, सन्तोषजनक और सान्त्वनादायक है।" मापका, मो० क० गांधी [अग्रेजीसे] नेटाल मक्युरी ३-१२-१८९४ ५३. खुली चिट्ठी हर्बन [१९ दिसम्बर, १८९४ से पूर्व ]' सेवामें माननीय सदस्यगण विधान परिषद व विधानसमा महोदय, अगर आपको गुमनाम खत लिखना सम्भव होता, तो मुझे उससे ज्यादा खुशी और किसी वातसे न होती। मगर मुझे इस पत्रमें जो बातें कहनी है वे इतनी महत्त्वपूर्ण और गम्भीर है कि मेरा अपना नाम प्रकट न करना बिलकुल कायरताका काम १. पह चिट्ठी १९ दिसम्बर, १८९४ को नेटाके यूरोपोोंको भेजी गई थी। देखिए अगला शीर्षक