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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं वकालतके लिए डर्बनमें रहने लगा हूँ । श्री ओल्डफील्डसे आपको इस विषयमें और जानकारी मिलेगी ।

यहाँ रहते हुए मेरा इरादा है कि जहाँतक हो सके, थियोसॉफीका प्रचार करूँ । (मेरे मन में थियोसॉफी और एसॉटरिक ईसाई धर्म में बहुत अन्तर नहीं है) इसलिए मैंने वेजिटेरियन सोसाइटीके अध्यक्ष और श्रीमती बेसेंटको [१]पत्र[२] लिखे हैं ।

मेरा प्रस्ताव है कि ई० सी० यू०[३] कुछ पुस्तकें बेचने के लिए मेरे पास भेज दे । मैं ये पुस्तकें लागतमें डाक खर्च और ५ प्रतिशत कमीशन जोड़कर बेच दूंगा । इस कमीशन के पैसे मेरे पास रहेंगे । जहाँतक दामका सवाल है, मुझे अपने विवेकानुसार दाम तय करनेकी स्वतन्त्रता दी जाये। मैं हर तीन महीने के बाद बिक्रीके पैसे भेज दिया करूँगा। इनके विज्ञापनका[४] खर्च मैं दूंगा। एक वर्ष के बाद न बिकनेपर मैं पुस्तकें अपने खर्चसे वापस भेज दूंगा। इन पुस्तकोंको ठीकसे रखने और बिक्रीके पूरे पैसे भेजने के लिए मैं व्यक्तिगत रूपसे जिम्मेदार हूँ । 'परफैक्ट वे' की ५ प्रतियाँ, 'क्लोद्ड विद द सन' की ५ प्रतियाँ, 'न्यू गॉस्पेल ऑफ इन्टरप्रिटेशन' की १० प्रतियाँ तथा दूसरी पुस्तकें मुझे भेजी जा सकती हैं । यदि पर्याप्त दिलचस्पी दिखाई गई तो मैं विज्ञापनका खर्च भी दाम में लगा दूंगा । निर्देश पत्र में प्रत्येक पुस्तकका दाम जरूर सूचित कर दिया जाये ।

यदि यूनियनको यह पत्र पूरा या उसका कोई अंश पढ़कर सुनाना आवश्यक हो तो आप पढ़कर सुना सकती हैं। मुझे आशा है कि आप यूनियनको या उसके अधिकारियोंको उपर्युक्त माँगसे सहमत होनेके लिए राजी कर लेंगी।

यदि 'सोल्स' की बातके बारेमें आपका विचार खास अच्छा नहीं है, तो इस विशिष्ट साहित्य में उसे क्या स्थान दिया जाये ? यदि लेखकने अपने निजी निरीक्षणके बाद जो कुछ लिखा है वह बिलकुल सच है तो पुस्तकको महत्त्वहीन भी नहीं मान सकते; किन्तु यदि उसमें आकर्षक असत्य कथन द्वारा लोगोंका सत्य में विश्वास कराने- का प्रयास किया गया है तो फिर यह पुस्तक अत्यधिक निन्दाके योग्य ही ठहरती है । क्योंकि हम झूटी बातोंके जरिए सत्य नहीं समझ सकते। बेशक यह सब लिखते हुए मेरे मनमें लेखिकाके प्रति तनिक भी अनादर भाव नहीं है; उन्हें तो मैं बिलकुल नहीं जानता । हो सकता है कि वे पूर्णतया ईमानदार और सच्ची महिला हों। मैं तो फिर यही कहूँगा कि 'सोल्स' को समझने के लिए लेखिकाके चरित्रसे परिचित होना एकदम जरूरी है ।

आपने जो आवेदनपत्र भेजा था उसके लिए मैं बहुत से हस्ताक्षर प्राप्त कर सका हूँ । लेकिन मुझे भय है कि नेटालके हस्ताक्षरोंका कुछ प्रभाव नहीं होगा। एक बहुत महत्वपूर्ण, फिर भी हानिरहित और श्रेष्ठ आन्दोलनको पर्याप्त समर्थनका न मिलना

  1. १. डा० एनी बेसेंट ।
  2. २. उपलब्ध नहीं हैं।
  3. ३. एसोटेरिक क्रिश्चियन यूनियन।
  4. ४. गांधीजी द्वारा दिये गये विज्ञापनके लिए देखिए “ पुस्तकें बिकाऊ हैं", २६-११-१८९४ से पूर्व।