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पत्र : श्रीमती ए० एम० लुईसको

मैं एक बार कह ही चुका हूँ और, बेशक, फिरसे कह दूं कि देशी लोगोंके शासनके यूरोपीयोंके हाथोंसे भारतीयोंके हाथोंमें चले जानेकी सम्भावना जरा भी नहीं है। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकारको डराना भी है। यहाँ रहनेवाले लोग '--सरकार-सहित -- खूब जानते है कि ऐसी बात कभी होनेवाली नहीं है। संसदमें अपने हितोंकी हिफाजत करनेके लिए भारतीय दो या तीन गोरे लोगोंको भी चुनें, यह वे नहीं चाहते; ताकि सरकार बिना किसी विघ्न-बाधाके भारतीयोंके सर्वनाशकी तैयारी कर सके।

मैने सर डब्ल्यू० वेडरबर्न[१] और वहाँके कुछ अन्य सज्जनोंको प्रार्थनापत्रकी नकलें भेजी हैं। कुछ नकलें भारतीय पत्रोंको भी भेज दी है।

कृपया मेरे पत्रों के लम्बे होनेको क्षमा करें। आप मुझे काम करनेके तरीकेपर सुझाव देंगे तो मैं बहुत ही आभारी हूँगा।

आपका विश्वस्त सेवक,

मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० २२५२) की फोटो-नकलसे ।

४८. पत्र: श्रीमती ए० एम० लुईसको

पो० आ० बॉ० २५३

डर्बन

४ अगस्त,१८९४

प्रिय श्रीमती लुईस[२],

आपके २७ जूनके कृपापूर्ण पत्रके लिए धन्यवाद । आपको पत्र[३] लिखनेके बाद मुझे प्रिटोरियाके एक डाक्टरसे मिलनेका अवसर मिला । एक अन्य सज्जन तथा उन्होंने ही थियोसॉफी सम्बन्धी बातोंमें रुचि दिखाई। मैंने उन्हें 'परफैक्ट वे' पढ़नेके लिए दी। उन्हें पुस्तक इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने मुझसे एक प्रति मॅगा देनेके लिए कहा। मैंने उन्हें अपनी ही पुस्तक भेंट कर दी। इसलिए यदि आप कृपापूर्वक 'परफैक्ट वे' की एक प्रति मुझे भेज देंगी तो मैं आभारी हूँगा। मैं अगली बार आपको पैसे भेज दूंगा। इस बार इतना कर सकनेके लिए समय नहीं है।

  1. १. सर विलियम वेडरवन; बॉम्बे सिविल सर्विसके एक सदस्यके रूपमें २५ वर्ष भारतमें रहे। निवृत होनेपर १९०० तक संसदसदस्य रहे। १८९३ में कांग्रेसको ब्रिटिश कमेटीके सभापति और १९१० में कांग्रेसके अध्यक्ष रहे।
  2. २. एसोंटरिक क्रिश्चियन यूनियनके अध्यक्ष एडवर्ड मेटलैंडकी मित्र और परफैक्ट वे आदि पुस्तकोंकी लेखिका; ऐना किंग्सफोर्डको प्रशंसक। वे भी एसोंटरिक यूनियनको संस्थापिका थी। ऐसा लगता है कि उनसे गांधोजीको मित्रता इंग्लैंडमें हुई थी जब वे वहाँ वकालत की शिक्षा प्राप्त करने गये थे।
  3. ३. उपलब्ध नहीं है।