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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक संशोधन भी पेश किया गया था। सरकारने चतुराई और दूरदर्शितासे काम लेकर माँग की कि उसपर मत लिये जायें और वह संशोधन केवल अध्यक्षके निर्णायक मतसे रद हुआ। प्रार्थी पूरी तरहसे स्वीकार करते हैं कि इस मामले में सरकारने बहुत सहानुभूतिका रुख अख्तियार किया। फिर भी इन घटनाओंका रुख और उनसे सूचित अनिष्ट स्पष्ट है। इस संशोधनका अवसर मताधिकार-विधेयकने ही प्रदान किया था।

(३४) प्राथियोंको मालूम हुआ है कि केप उपनिवेशमें रंग या जाति-सम्बन्धी ऐसा कोई भेदभाव नहीं है।

(३५) प्रार्थी आदरपूर्वक यह कहने की इजाजत चाहते हैं कि अगर यह विधेयक कानूनके रूपमें परिणत हो गया तो दक्षिण आफ्रिकाके अन्य भागोंमें रहनेवाले ब्रिटिश मारतीय प्रजाजनोंपर इसका असर एकदम विनाशकारक होगा। आज ट्रान्सवालमें वे दमित हैं और द्वेषके शिकार हैं; बादमें तो उनकी स्थिति एकदम असह्य हो उठगी। अगर एक ब्रिटिश उपनिवेश में भारतीय ब्रिटिश प्रजाजनोंके साथ जरा भी भेदभावका व्यवहार होने दिया गया तो, प्राथियोंका नम्र निवेदन है, शीघ्र ही एक समय ऐसा आयेगा जब थोड़ा भी स्वाभिमान रखनेवाले भारतीयका उपनिवेशमें रहना असम्भव हो जायेगा। ऐसी स्थितिसे उनके रोजगार-धंधे में बहुत बाधा पड़ेगी, और सम्राज्ञीके सैकड़ों प्रजाजन बेरोजगार हो जायेंगे।

(३६) अन्तमें प्रार्थी आशा करते हैं कि उपर्युक्त तथ्यों और दलीलोंसे महानु-भावको मताधिकार कानून संशोधन विधेयकके अन्यायपूर्ण होने में विश्वास हो जायेगा और, महानुभाव सम्राज्ञीकी प्रजाके एक वर्गको दूसरे वर्गके अधिकारोंमें अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करने देंगे।

न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी कर्तव्य समझकर सदैव दुआ करेंगे, आदि ।

हाजी मुहम्मद हाजी दादा

[१]

और सोलह अन्य

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स, सं० १७९, खण्ड १८९
  1. १. नेटाल भारतीय कांग्रेसके उपाध्यक्ष, १८९४-९५