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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं या निरे काल्पनिक होते हैं, जनताके सामने फैलाकर दिखानेके बजाय आप उनके साम्य-सूचक मुद्दोंको एकत्र करके प्रदर्शित करें तो मानव-जातिको अधिक सेवा नहीं होगी? विरोधी तत्त्व तो मनुष्यके बुरेसे-बुरे भावोंको ही जगा सकते हैं न, जब कि किसीका सच्चा लाभ उनसे हो ही नहीं सकता? मैं नहीं समझता कि दोनों राष्ट्रोंके बीच ईर्ष्या और शत्रुताके बीज बोना आपके लिए लाभजनक हो सकता है। मुझे कोई सन्देह नहीं कि ऐसा करनेकी शक्ति आपमें है, जैसी कि वह हरएकमें कम या ज्यादा मात्रामें होती है। परन्तु इससे बहुत ऊँची और बहुत उदात्त एक चीज भी आपकी पहुँचके अन्दर है-- वह एक ऐसी चीज है, जो न केवल आपको महत्ता प्रदान करेगी, बल्कि भला भी बनायेगी। और वह चीज है-- उपनिवेशके लोगोंको भारत और उसके लोगोंके बारेमें सही शिक्षा देना। इसके अलावा, आपको एक पूरे राष्ट्रकी, जो १,२०० वर्षके दमन और अत्याचारोंसे भी कुचला नहीं जा सका, कृतज्ञता प्राप्त होगी। उस राष्ट्रका कुचला न जा सकना अपने-आपमें एक चमत्कार है।

आपका,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मयुरी, ११-७-१८९४

४४. प्रार्थनापत्र: नेटालके गवर्नरको

[१]

डर्बन

१० जुलाई, १८९४

सेवामें

परमश्रेष्ठ माननीय सर वॉल्टर फ्रान्सिस हेली-हचिन्सन, के०सी०एम०जी०, गवर्नर, नेटाल उपनिवेश; प्रधान सेनापति तथा वाइस-एडमिरल, नेटाल;और देशी आबादीके सर्वोच्च शासक

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले भारतीयोंका प्रार्थनापत्र

सादर निवेदन है कि:

(१) प्रार्थी नेटाल उपनिवेशवासी भारतीय समाजके प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे इस प्रार्थनापत्र द्वारा मताधिकार कानून संशोधन विधेयकके सम्बन्धमें महानुभावकी सेवामें उपस्थित हो रहे हैं

(२) प्रार्थियोंको मालूम हुआ है कि महानुभाव उपर्युक्त विधेयकको सम्राज्ञीकी सम्मतिके लिए ब्रिटिश सरकारके पास भेजेंगे।

  1. १. उपनिवेश मन्त्री लॉर्ड रिपनके नाम नेटालके गवर्नर सर वॉल्टर हेली-हचिन्सनके खरीता सं०६२, जुलाई, १८९४ का सहपत्र सं०६।