पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/१९३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४९
प्रार्थनापत्र : नेटाल विधानपरिषदको

(१०) प्रार्थी सादर निवेदन करते है कि विधेयक ब्रिटिश प्रजाके एक वर्ग और दूसरे वर्गके बीच द्वेषजनक भेद-भाव उत्पन्न करनेवाला है। परन्तु कहा यह गया है कि यदि भारतीय ब्रिटिश प्रजाके साथ यूरोपीयोंकी बराबरीका बरताव किया जाता है तो वही बरताव दूसरी ब्रिटिश प्रजाओं--अर्थात् उपनिवेशके वतनी लोगोंके साथ भी होना चाहिए। प्रार्थी अप्रिय तुलनामें उतरे बिना सम्राज्ञीकी १८५८ की घोषणाका एक अंश उद्धृत करनेकी इजाजत लेते हैं। उससे मालूम होगा कि भारतीय ब्रिटिश प्रजाके साथ किन सिद्धान्तोंके आधारपर व्यवहार किया जाना चाहिए:

हम अपने-आपको अपने भारतीय प्रदेशके निवासियोंके प्रति कर्त्तव्यके उन्हीं दायित्वोंसे बँधा हुआ समझते हैं, जिनसे हम अपनी दूसरी प्रजाओंके प्रति बँधे हैं। और सर्वशक्तिमान परमात्माको कृपासे हम उन दायित्वोंका निष्ठापूर्वक और सदसद् विवेक-बुद्धि के साथ निर्वाह करेंगे। और इसके अतिरिक्त हमारी यह भी इच्छा है कि हमारे प्रजाजन अपनी शिक्षा, योग्यता और ईमानदारीसे हमारी जिन नौकरियोंके कर्तव्य पूर्ण करने के योग्य हों उनमें उन्हें जहाँतक हो सके, जाति और धर्मके भेद-भावके बिना मुक्त रूप और निष्पक्ष भावसे सम्मिलित किया जाये। उनकी समृद्धि में ही हमारी शक्ति होगी, उनके संतोषमें ही हमारी सुरक्षा होगी और उनकी कृतज्ञतामें ही हमारा सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार होगा।

(११) उपर्युक्त उद्धरण और १८३३ के अधिकारपत्रके [१] अनुसार, भारतीयोंको भारतमें मुख्य न्यायाधीशके जैसे अत्यन्त उत्तरदायी पदोंपर नियुक्त किया जाता है। फिर भी, यहाँ, एक ब्रिटिश उपनिवेशमें, प्रार्थियोंको या उनके भाई-बन्दोंको या उनके बच्चोंको साधारण नागरिकोंके सामान्यतम अधिकारसे वंचित करनेका प्रयत्न किया जा रहा है।

(१२) अब कहा गया है कि भारतीय लोग नगरपालिकाके स्वशासन तो जानते है, किन्तु राजनीतिक स्वशासनसे अनभिज्ञ हैं। प्राथियोंका निवेदन है कि यह भी बिलकुल सच नहीं है। परन्तु मान लिया जाये कि बात बराबर ऐसी ही है,तो क्या जिस देशमें संसदीय शासन प्रचलित हो उसमें भारतीयोंको राजनीतिक मता- धिकारसे वंचित करनेका यह कोई कारण होना चाहिए? प्रार्थियोंका निवेदन है कि सच्ची और एकमात्र कसौटी यह होनी चाहिए कि आपके प्रार्थी और जिनकी वे पैरवी कर रहे हैं वे योग्य है अथवा नहीं। जिस देशमें राजाका राज्य है वहाँसे आया हुआ कोई व्यक्ति--उदाहरणार्थ रूसी-- भले ही प्रातिनिधिक शासनको समझने या

  1. १. एक संसदीय जाँच आयोगके निष्कर्षोंपर आधारित, "इस अधिनियम द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारतमें व्यापार करनेके अधिकार समाप्त कर दिये गये थे और उसका कार्यक्षेत्र उसके स्वामित्वमें आये प्रदेशोंका शासन करनेतक ही रहने दिया गया था। सन् १८५३ में इसकी फिरसे पुष्टि की गई और अधिकारपत्र अधिनियममें व्यवस्था की गई कि किसी भी भारतीयको उसके धर्म, जन्म-स्थान, वंश या रंगके कारण ईस्ट इंडिया कम्पनी" के अधीन किसी भी पद था नौकरीके लिए अयोग्य नहीं माना जायेगा।