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प्रार्थनपत्र : नेटाल विधानसभाको

पर्याप्त बहुमतसे उसके निर्णयोंको बदल सकता है। प्राथियोंका निवेदन है कि प्रति-निधत्वके सम्बन्धमें उनकी योग्यताओंका यह प्रमाण मौजूद है ही।

(१३) सच तो यह है कि सम्राज्ञीको सरकारने प्रातिनिधिक संस्थाओंको समझनेकी भारतीयोंकी योग्यता इस हदतक मान्य कर ली है कि भारत, शब्दके सच्चेसे-सच्चे अर्थ में, नगरपालिका स्थानिक स्वराज्यका उपभोग कर रहा है।

(१४) १८९१ में भारतमें ७५५ नगरपालिकाएँ और ८९२ स्थानीय निकाय[लोकल बोर्ड ] थे। उनमें २०,००० भारतीय सदस्य थे। इससे नगरपालिकाओं और उनके निर्वाचक-मंडलोंके विस्तारकी कुछ कल्पना हो सकेगी।

(१५) अगर इस विषयमें अधिक प्रमाणकी जरूरत हो तो प्रार्थी माननीय सदस्योंका ध्यान हालमें ही स्वीकृत हुए भारतीय परिषद विधेयककी ओर आकृष्ट करते हैं। उसके द्वारा भारतके विभिन्न प्रदेशोंकी विधानपरिषदोंमें भी प्रतिनिधि-प्रणाली दाखिल कर दी गई है।

(१६) इसलिए, प्रार्थियोंको विश्वास है, उनका मताधिकारका प्रयोग करना किसी ऐसे नये विशेषाधिकारका दिया जाना नहीं है, जिसे वे पहले कभी जानते ही न रहे हों, या जिसका उपभोग उन्होंने पहले कभी किया ही न हो। उलटे, उन्हें उसका प्रयोग करनेके अयोग्य ठहराना एक अन्यायपूर्ण प्रतिबन्ध होगा, जो ऐसी ही परिस्थितियों-में उनकी मातृभूमिमें कभी नहीं लगाया जायेगा।

(१७) फलत: प्रार्थियोंका निवेदन है कि कमसे-कम कहा जाये तो भी यह भय निराधार ही है कि अगर भारतीयोंको मताधिकारका प्रयोग करने दिया गया तो वे "जिस महान देशसे आये है उसमें आन्दोलनके प्रचारक और राजद्रोहके उप- करण बन जायेंगे।"

(१८) छोटी-छोटी बातोंकी, और दूसरे वाचनकी बहसमें व्यर्थ ही जो कड़े आक्षेप किये गये, उनकी चर्चा करना प्रार्थी अनावश्यक समझते हैं। फिर भी प्रार्थी कुछ ऐसे अंश उद्धृत करनेकी इजाजत चाहते हैं, जिनका विचाराधीन विषयपर असर पड़ता है। प्रार्थी तो यही पसंद करते कि उनके कामोंसे उनके बारेमें मत निर्धारित किया जाता, न कि दूसरोंने उनकी जातिके बारे में जो खयाल किया है उसे उद्धृत करके अपनी बात सही ठहराई जाती। परन्तु वर्तमान परिस्थितियोंमें हमारे सामने कोई दूसरा रास्ता खुला नहीं है, क्योंकि मुक्त पारस्परिक व्यवहार न होने के कारण हमारी क्षमताओंके बारेमें बहुत भ्रम फैला हुआ दिखलाई पड़ता है।

(१९) केनिंगटनके विधानसभा भवनमें भाषण करते हुए श्री एफ० पिनकॉटने कहा था:

भारतीयोंके अज्ञान और प्रातिनिधिक शासनके महान लाभोंको समझनेसे सम्बन्धित उनकी अयोग्यताके बारेमें हमने इस देशमें बहुत-कुछ सुना है। सचमुच वह सारा कथन बहुत मूर्खतापूर्ण है, क्योंकि प्रातिनिधिक शासनका शिक्षाके

१. इंडिया कौंसिल्ज बिल।