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दस

 

श्रद्धाकी पूरी भावनासे हम इस कामको उठायें, ताकि आगे आनेवाली पीढ़ियोंको कुछ झाँकी मिले हमारे इस प्यारे नेताकी, जिसने अपने प्रकाशसे हमारी पीढ़ीको आलोकित किया; और जिसने हमें राष्ट्रीय स्वतन्त्रता ही नहीं दिलाई, बल्कि हमें एक ऐसी दृष्टि भी दी, जिससे हम उन गहरे गुणोंको पहचानें, जो आदमीको बड़ा बनाते हैं। आनेवाले युगोंके लोग अचरज करेंगे कि किसी जमानेमें एक ऐसे महापुरुषने हमारी भारत-भूमिपर पग रखे थे और अपने प्रेम और सेवासे हमारी जनताको ही नहीं, बल्कि सारी मनुष्य-जातिको शराबोर किया था।

मैं यह दार्जिलिंग में लिख रहा हूँ, और विशाल कंचनजंगा सामने ऊँचा खड़ा हुआ है। आज सवेरे मैंने गौरीशंकर — एवरेस्ट — की झलक देखी थी। मुझे ऐसा लगा कि गौरीशंकर और कंचनजंगाकी प्रशान्त शक्ति और नित्यता कुछ अंशोंमें गांधीजीमें भी विद्यमान थी।

जवाहरलाल नेहरू

दार्जिलिंग
२७ दिसम्बर, १९५७