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३३. अपील : इंग्लैंड स्थित भारतीयोंसे'

प्रिय भाई,

अगर आप अन्नाहारी हैं, तो मैं समझता हूँ कि लंदन वेजिटेरियन सोसाइटी के सदस्य बन जाना आपका कर्तव्य है। और अगर आप अभीतक 'वेजिटेरियन'के ग्राहक न बने हों तो वह भी बन जाना चाहिए।

यह आपका कर्तव्य है, क्योंकि--

(१) आप जिस मतको स्वीकार करते हैं उसे इसके द्वारा प्रोत्साहन और सहायता मिलेगी।

(२) एक ऐसे देशमें, जहाँ अन्नाहारियोंकी संख्या बहुत कम है, उनके बीच परस्पर सहानुभूतिका जो सम्बन्ध होना चाहिए, उसकी इससे अभिव्यक्ति होगी।

(३) अंग्रेज अन्नाहारी भारतीयोंकी आकांक्षाओंके साथ सहानुभूति रखने में अधिक तत्पर रहेंगे (यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है)। इस प्रकार अन्नाहार-आन्दोलनसे अप्रत्यक्ष रूपमें भारतको राजनीतिक सहायता मिलेगी।

(४) केवल शुद्ध स्वार्थकी दृष्टि से देखा जाये तो भी, इसके द्वारा आप अन्नाहारी मित्रोंके एक बड़े मण्डलके सम्पर्क में आ जायेंगे। ये मित्र तो दूसरोंकी अपेक्षा अधिक अपनाने योग्य होने चाहिए।

(५) अन्नाहारी साहित्यके ज्ञानसे आप एक ऐसे देशमें अपने सिद्धान्तोंपर दृढ़ रह सकेंगे, जहाँ प्रलोभन बहुत हैं और जो बहुत अधिक लोगोंके लिए दुनिवार सिद्ध हो चुके हैं। बीमार होनेपर आपको निरामिष औषधियों और अन्नाहारी डाक्टरोंकी मदद भी मिल सकेगी। मंडलके सदस्य और 'वेजिटेरियन' पत्रके ग्राहक बननेसे आप इनकी जानकारी बहुत आसानीसे पा सकेंगे।

(६) भारतमें आपके भाइयोंको इससे बहुत सहायता मिलेगी। निरामिष भोजनसे निर्वाह किया जा सकता है, इस सम्बन्धमें हमारे माता-पिताओंकी शंका मिटानेका भी यह एक साधन होगा। इस प्रकार दूसरे भारतीयोंके इंग्लैंड आनेका मार्ग बहुत सरल हो जायेगा।

(७) अगर भारतीय ग्राहकोंकी संख्या काफी हो तो 'वेजिटेरियन' के सम्पादक-को एक पृष्ठ या एक स्तम्भ भारतीय मामलोंके लिए सुरक्षित कर देनेको राजी किया

१. यह पत्र सम्पादक वेजिटेरियनने इस टिप्पणीके साथ प्रकाशित किया था: “श्री मो० क. गांधीने इंग्लैंडके भारतीयों को निम्नलिखित पत्र भेजा है। हम इसे यह स्पष्ट करनेके लिए यहाँ दे रहे हैं कि श्री गांधी, एक लम्बे फासलेके बावजूद, जो उनको हमसे जुदा किये हुए है, हमारे बीच अब भी कैसी सरगर्मासे काम कर रहे हैं। तिसपर भी, हमारे विरोधियोंका कहना है कि अन्नाहारी भारतीयोंमें अपने लक्ष्यके प्रति " ईमानदार बिटिश राष्ट्र" के पुत्रों जैसी लगन नहीं होती।