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लन्दन-संदर्शिका

ऊपर जो-कुछ बताया गया है उसपर अमल करने के लिए केवल कठोर आत्म-संयमकी आवश्यकता है। जिसमें इच्छा-शक्ति है, उसके लिए बाकी काम सरल हो जाता है। थोड़े-से अभ्यासके बाद आपको इस ढंगसे जीवन बितानेकी आदत पड़ जायेगी। उस जीवन-क्रमको अपनाइए जो सर्वश्रेष्ठ है और अभ्याससे वह आनन्दमय बन जायेगा।

सबसे अच्छा यही होगा कि मैं डा° निकोलसकी पुस्तक 'हाउ टु लिव ऑन सिक्स पेंस ए डे' से निम्न पंक्तियाँ उद्धृत करते हुए इस अध्यायको समाप्त करूँ:

लुई कोन्रारोका कई बार हवाला दिया जाता है। दीर्घायु,प्रफुल्ल और स्वस्थ बना रहने के लिए सरल और अल्प आहार कितना प्रभावकारी होता है,इस बातका वह एक उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। चालीस वर्षकी आयुमें ऐसा प्रतीत हुआ कि जिसे हम उन्मुक्त जीवन कहते हैं, उस उन्मुक्त जीवनके कारण उसका स्वास्थ्य नष्ट हो चुका है। उसने अपनी सभी आदतें छोड़ दी और प्रतिदिन सिर्फ १२ औंस भोजन लेने लगा। इससे उसका स्वास्थ्य बढ़िया हो गया कि कोई आधी शताब्दीतक वह कभी बीमार नहीं हुआ। नब्बे वर्षकी आयुके बाद अपने मित्रोंकी सलाह मानते हुए उसने १२ औंस भोजनके बजाय दिनमें १४ औंस भोजन लेना शुरू किया। खूराकमें इतनी मामूली-सी वृद्धि तो उसकी जानपर ही बन आई। वह उदास और हतोत्साह रहने लगा। वह हर बातसे खीज उठता; और फिर उसके पेट में ऐसा दर्द हुआ कि उसके कारण न सिर्फ उसे खूराक मजबूरन पहले-सी ही नहीं बल्कि उससे भी कुछ कम कर देनी पड़ी। पच्चानवे वर्षको आयुमें उसने लिखा है कि उसका जीवन अत्यन्त शान्त और आनन्दपूर्ण है। उसने नाटक लिखे, वेनिसको मजबूत और सुन्दर बनाने में सहायता की। अपने लौकिक जीवनको उसने सुन्दर कहा है और उसका पूर्ण आनन्द लिया। उसने लिखा है कि मैं पच्चानवे वर्षका हो गया हूँ पर इस तरह स्वस्थ और प्रसन्न हूँ मानो मेरी आयु सिर्फ पच्चीस ही हो। इस आयुमें और १०० वर्षका होने पर भी उसकी इन्द्रियाँ, स्मृति, हृदय, बुद्धि या आवाजमें बिलकुल कमी नहीं आई थी। वह दिनमें सात-आठ घंटे लिखा करता था, घूमने जाता था, लोगोंसे मिलता-जुलता था, संगीत सुना करता था, खुद बहुत अच्छा बजाया और गाया करता था। उसकी परपोती लिखती है, "वे सौ सालकी आयुतक पूर्ण तथा स्वस्थ ही नहीं, चुस्त भी रहे। उनके मस्तिष्कमें कोई कमजोरी नहीं आई। उन्हें कभी चश्मेकी जरूरत नहीं पड़ी और कानों से भी ठीक सुनाई देता था। उनकी आवाज इतनी जोरदार और मधुर बनी रही कि जीवन के अन्त में भी वह उतने ही जोर और खुशीसे गाते थे, जितना कि बीस वर्षको आयुमें।"

पाठक परिशिष्टमें देखेंगे कि इंग्लैंडमें अपने प्रवासके अन्तिम वर्ष के दौरान मैने एक महीनेमें ४ पौंडसे कैसे निर्वाह किया।