पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/१३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

श्रद्धांजलि

महात्मा गांधीका उद्देश्य किसी जीवन-दर्शनका विकास करना या किन्हीं मान्यताओं अथवा आदर्शोंकी प्रणाली निर्मित करना नहीं था। शायद उन्हें ऐसा करनेकी न तो इच्छा थी, न अवकाश ही। तथापि सत्य और अहिंसामें उनका दृढ़ विश्वास था और सामने उपस्थित समस्याओंमें इनके व्यावहारिक प्रयोगको ही उनकी शिक्षा और जीवन-दर्शन कहा जा सकता है।

शायद ही कोई राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, कृषि व श्रम-सम्बन्धी, औद्योगिक या अन्य ऐसी समस्या हो, जिसपर उन्होंने विचार नहीं किया, और जिसे अपने ही निजी ढंगसे उन सिद्धान्तोंके अन्दर रहकर नहीं निबटाया जिन्हें वे मूलभूत और तात्त्विक मानते थे। व्यक्तिगत जीवनकी छोटी-छोटी, तफसीलों—आहार, पोशाक तथा दैनिक कामकाजसे लेकर जातिप्रथा और अस्पृश्यता-जैसी बड़ी-बड़ी उन समस्याओं तक जो शताब्दियोंसे भारतीय जीवनका न केवल अटूट बल्कि धर्मसम्मत अंग भी बनी हुई थीं — से सम्बन्धित जीवनका शायद ही कोई ऐसा पहलू हो, जिसे उन्होंने प्रभावित नहीं किया और अपने साँचे में नहीं ढाला।

उनके विचार आश्चर्यजनक रूपसे ताजा होते थे। उनमें परम्परा या प्रचलित रीतियोंकी कोई बाधा नहीं होती थी। इसी तरह छोटी और बड़ी समस्याओंको निबटानेकी उनकी पद्धति भी कम अनोखी नहीं थी। ऊपरी तौरपर देखनेपर वह विश्वासजनक न होनेपर भी अन्ततः सफल सिद्ध होती थी। स्पष्ट ही उनके स्वभावमें कट्टरताकी तो गुंजाइश ही नहीं थी। नये-नये अनुभवोंसे प्राप्त होनेवाले नये ज्ञानसे अपने-आपको वंचित रखना उनके लिए सम्भव नहीं था। और इसी कारण वे ऊपरी पूर्वापर-संगतिके हठी भी नहीं थे। सच तो यह है कि उनके विरोधियों और कभी-कभी उनके अनुयायियोंको भी उनके कुछ कार्योंमें परस्पर-विरोध दिखलाई पड़ता था; किन्तु गांधीजी बात समझने और माननेको इतने तैयार रहते थे और उनमें नैतिक साहस इतना असाधारण था कि अगर एक बार उन्हें यह विश्वास हो जाता कि जो काम उन्होंने किया है वह त्रुटिपूर्ण है तो वे अपनी भूल सुधारने और सार्वजनिक रूपसे यह घोषित कर देने में कि उनसे भूल हुई थी, कभी संकोच नहीं करते थे। हमने अकसर देखा है कि वे साथियोंको अपने निर्णयों और कार्योंकी वस्तुपरक तथा निष्पक्ष आलोचना करनेको कहते थे। इसमें आश्चर्य नहीं कि उनके कुछ कार्य कभी-कभी उनके ही प्रशंसकोंको पहेली-जैसे मालूम होते थे और उनके आलोचकोंको चक्करमें डाल देते थे।

ऐसे पुरुषको ठीक तरहसे समझनेके लिए उनकी शिक्षाओं और जीवन घटनाओंको व्यापक तथा समग्र रूपमें देखना बिलकुल जरूरी है। उनकी जीवनकथाकी रूपरेखा-मात्रका, या उसके किसी अंशको पृथक् करके उसका ही अध्ययन कर लेना