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लन्दन-संदर्शिका

सबसे पहली और जरूरी बात स्वास्थ्य है। जिस व्यक्तिके फेफड़े कमजोर हों या जिसे क्षय हो जानेका अन्देशा हो, उसे कभी इंग्लैंड जानेका विचार नहीं करना चाहिए। उसके लिए इंग्लैंड जानेका अर्थ होगा मित्रों और सम्बन्धियोंसे दूर मौतके मुंहमें जाना । बल्कि उस हालतमें आप दक्षिणी यूरोप अवश्य जा सकते हैं। उससे आपके स्वास्थ्यको कोई हानि नहीं होगी, बल्कि लाभ ही होगा। इस तरह यदि आप रिवेरा जाये तो आपको क्षयसे मुक्ति मिल सकती है। इस भयंकर रोगसे छुटकारा पाने के लिए वहाँ हर वर्ष हजारों क्षय-ग्रस्त रोगी जमा होते हैं। कमजोर फेफड़ोंवाले व्यक्तिके लिए वह एक बहुत बढ़िया स्थान माना गया है। परन्तु इसके लिए काफी खर्च करना पड़ता है। और फिर यह पुस्तिका रोगियोंके लिए नहीं लिखी गई है कि वे इसमें दिये गये निर्देशोंका पालन कर नीरोग हो सकें। यह तो उन लोगोंके लिए लिखी गई है जिनका स्वास्थ्य अच्छा है और जो कुछ सीखकर उपयोगी काम करना चाहते हैं। फिर यह है भी उन्हीं व्यक्तियोंके लिए जो इंग्लैंड जायेंगे। यह भी सच है कि सामान्य रूपसे कमजोर व्यक्ति गर्मीके दिनोंमें इंग्लैंडकी सैर कर सकता है और इससे उसके स्वास्थ्यको कम-ज्यादा कोई हानि नहीं होगी। फिर भी यदि मैं अपनी कोई राय दे सकने योग्य हूँ तो मैं यही कहूँगा कि जिसे किसी भी तरहकी फेफड़ोंकी कोई बीमारी हो उसे किसी विशेष अवसर या परिस्थितिको छोड़कर इंग्लैंड जानेका कभी विचार नहीं करना चाहिए। दूसरी ओर जिन्हें गर्म जलवायुके कारण कोई बीमारी हो यदि वे इंग्लैंड जायें तो वह उनके लिए अच्छा ही होगा। मुझे भारतमें सिर-दर्द रहा करता था और नाकसे रक्तस्राव हो जाया करता था। मुझे गर्मीके दिनोंमें लगातार तीन या चार घंटे पढ़नेपर सिरमें दर्द हो जाया करता था। मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता है कि मैंने इन दोनोंसे बिलकुल छुटकारा पा लिया है और मैं मानता हूँ कि इसका कारण मुख्यत: इंग्लैंडकी ठंडी और स्फूर्तिदायिनी जलवायु ही रही। अपने स्वास्थ्यके सम्बन्धमें किसी भी तरहका सन्देह हो तो किसी विशेषज्ञसे जाँच करा लेना ही अच्छा होगा।

दूसरा प्रश्न है आयुका। उसके सम्बन्धमें कोई पक्के नियम निश्चित करना बहुत कठिन है। सामान्य तौरपर माता-पिता ही यह जान सकते हैं कि बच्चा कब अकेला भेजा जाने योग्य हो गया है। फिर इस प्रश्नका उत्तर उस बालकके चरित्रपर भी निर्भर है जो वहाँ जाना चाहता है। वह इस बातपर भी निर्भर है कि वहाँ उसका क्या करनेका इरादा है। यदि बालक प्रशासन-सेवाकी परीक्षामें बैठना चाहता है तो उसके लिए आयु सीमा अब २३ वर्ष है। यदि कोई बैरिस्टर बनना चाहता है तो यह २१ वर्षका हो जानेपर भी सम्भव है। मैट्रिककी परीक्षा देनेवालेको कमसे-कम सोलह वर्षका होना चाहिए। यदि आप अपने बच्चेको वहाँ प्राथमिक शिक्षा देनेके लिए भेजना चाहते है तो आप बालकको बिना किसी संरक्षकके, किसी भी ऐसे स्कूलमें भेज सकते हैं जहाँ सिर्फ बच्चोंको शिक्षा दी जाती है और उनकी देख-भाल की जाती है।

अभीतक तो मैंने इस प्रश्नके निषेधात्मक पक्षकी ही चर्चा की है। अब मैं उसके विधेयात्मक पक्षको लेता हूँ। मोटे तौरपर यह कह देनेका लोभ हो सकता है कि