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व्रजलालभाईके बारेमें यह सुनकर बहुत खुशी हुई कि वे गुजरातमें कहीं कार-भारी' बन गये हैं।

आप इतने अच्छे अक्षर लिखते हैं कि मुझे आपकी नकल करनेका लोभ हो आया--हालाँकि मैं बड़ी कच्ची नकल कर सका हूँ।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्रसे।

२५. पत्र: 'नेटाल एडवर्टाइजर' को

डर्बन

२६ मई, १८९३

सम्पादक
नेटाल एडवर्टाइजर'
महोदय,

आपके आजके अंकमें "एक अवांछनीय" अतिथि शीर्षकसे' मेरे विषयमें जो अनुच्छेद प्रकाशित हुआ है, उसे पढ़कर मैं चकित रह गया। यदि माननीय मजिस्ट्रेटने मेरी ओर तिरस्कारपूर्ण दृष्टिसे देखा हो, तो मुझे उसका खेद है। यह सच है कि अदालतमें प्रवेश करते समय न तो मैंने अपनी पगड़ी उतारी और न सलाम ही किया। परन्तु उस समय मुझे इसका तनिक भी आभास न था कि यह माननीय मजि- स्ट्रेट महोदयका अपमान करना है या उससे अदालतके प्रति अनादर व्यक्त हो रहा है। जिस प्रकार यूरोपीय लोगोंमें सिरसे टोपी उतार देना आदरसूचक माना जाता है, इसी प्रकार भारतीयोंमें उसे पहने रहना आदरसूचक माना जाता है। उनके लेखे किसीके सामने नंगे सिर जाना तो उसका अनादर करना है। इंग्लैंडमें छोटी-छोटी सभाओं और समारोहोंमें जाकर भारतीय कभी अपने सिरकी टोपी आदि नहीं उतारते

१. प्रशासक या एडमिनिस्टेटर ।

२. विवरण इस प्रकार था: “कल दोपहर एक भारतीयने अदालतमें प्रवेश किया और वकीलोंकी मेजपर बैठ गया। उसकी वेशभूषा अच्छी थी और बताया गया है कि वह इंग्लैंडका एक बैरिस्टर है सुना है कि वह एक भारतीय मामलेके सिलसिले में प्रिटोरिया जा रहा है। वह सिरसे पगड़ी उतारे बिना और सलाम किये बिना अदालतमें चला आया और मजिस्ट्रेटने उसे तिरस्कारपूर्ण दृष्टिसे देखा। नवागतसे विनम्रतापूर्वक पूछा गया कि उसे क्या काम है और उसने जवाब दिया कि वह इंग्लैंडका एक वैरिस्टर है। उसने अपने प्रमाणपत्र पेश करनेका कोई प्रयत्न नहीं किया और दुवारा मेजपर लौटनेपर उसे सहूलियतके साथ यह समझा दिया गया कि उपयुक्त यहो होगा कि वे अदालतमें उपस्थित होनेसे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय में अपना नाम दर्ज करा लें"। इस घटनाका विवरण २६-५-१८९३ और २७-५-१८९३ के नेटाल मयुरीमें भी छपा था।