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सिका।


होना चाहिए, जिसमें बहुत से सिम्तें के रखने में जगह कम सके और साथ ले जाने में सुभीता भी हो।

क्षयशीलता का न होना भी सिझे के लिए ज़रूरी गुण है। जो चीज़ घिल कर, कट कर, सड़ कर बरवाद या कम हो जाती है उसका सिका जारी करने में बड़ी हानि उठानी पड़ती है । यदि अंडों या घोंघों का सिमा चलाया जाय. और वे गिर कर टूट जाये तो उनके बदले कभी कोई चीज़ न मिल सकेगी यद्यपि ऐसे पदार्थ संसार में प्रायः एक भी नहीं जिनका बिलकुल ही नाश न हाता हो, तथापि सोने-चांदी का बहुत कम नाश होता है। सोना-चाँदी वाटुत समय तक रहते हैं और बहुत कम घिसते हैं। उनके टूटने फूटने का भी बहुत कम डर रहता है । इसीसे इन्ही धातुओं के सिक बनाये जाते हैं।

जिस चीज़ का सिक्का बनाया जाय वह एक सी होनी चादिए । उसके साधर्म्य या समजातित्व में फर्क न होना चाहिए । रेसा न होने से उसके में फर्क आजायगा। सोना और चाँदी भट्ठी में डालकर एक धर्म के, एक जाति के एक कस के, बनाये जा सकते हैं। एक प्रकार के पक तेले सोने या चाँदी का माल भाग मैं तपा कर दूसरे प्रकार के उतने ही सोने या चांदी के माल के बराबर किया जा सकता है। कीमती पत्थर अगर लिक के काम में लाये जाते तो उनमें साधयं मुशकिल से आसकता । होरे का मोल बहुत करके उसके रंग और चमक के ऊपर अबलम्बित रहता है । परन्तु सब हीरों का रंग और चमक एकसी नहीं होती । अतएव दो हीरे यदि तुल्य आकार, तुल्य वजन और तुल्य काट के हो तो उनका मोल बराबर न हो सकेगा।

सिको की चीज़ में अलग अलग भाग किये जाने की योग्यता का होना भी जरूरी है। उसमें यदि विभाज्यता-गुगा न होतो व्यवहार में घड़ी कठिनाई पड़े। ताले भर सोने के यदि चार टुकड़े किये जायें तो उन चारों का माल ताले भर हो के घरावर होगा । पर छ माशे के एक होरे के यदि छ टुकड़े किये जायें तो अलग अलग उन सब का माल मिलकर कभी उस पूरे हीरे के मोल के बराबर न होगा।

सिक्के के माल में स्थिरता का होना भी बहुत जरूरी है । यदि यह बात न होगी तो सब चीज़ों की कीमत रोज़ ही कम ज़ियादह हुआ करेगी और लेन दन में बेहद गड़बड़ होगी। सोने और चांदी के सियो के मोल में अनस्थिरता

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