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सम्पत्ति-शास्त्र।


करने से बड़ी हानि हो सकती है। गधे का काम यदि धोड़े से लिया जाय तो ज़रूरही हानि होगी । घोड़े का काम प्रोड़े से लेना चाहिए और गधे का गधे से । तभी लाभ होगा; और तभी. बर्च कम होने से. सम्पत्ति की अधिक उत्पत्ति होगी । श्रम-विभागसे लूले, लँगड़, अपाहिज, बच्चे और स्त्रियाँ भी अपनी अपनी शक्ति पार योग्यता के अनुसार काम करके जीवन निर्वाह कर सकती हैं।

श्रम-विभाग से एक हानि भो है । इससे श्रमजीवियों की बुद्धि विकसित नहीं होनी । यह बढ़ती नहीं । जो आदमी जन्म भर एकही काम करता है उसको बुद्धि दूसरा काम करने में महीं चलती ! जो सुनार सिर्फ जेंवर बनाना या गहना जानता है, नक्श करना नहीं जानता, उससे नधाशी का काम न होगा । उस काम में उसको बुद्धि हो न चलेगी । जो लोहार सिर्फ हल के फाल बनावंगा वह चाक न बना सकेगा। यह एक प्रकार की हानि जरूर है। पर हानि और लाभ दानों का मुकाबला करने पर हानि की मात्रा कम और लाभ को मात्रा अधिक निकलती है । अतएव धाड़ी हानि के डर से बहुत लाभ में हाथ धोना बुद्धिमानी का काम नहीं।

श्रम-विभाग के नियमों को ध्यान में रखकर यदि सब देश और सब जातियां काम करें तो यहद लाभ हा । इस दशा में हर देश वही चीज़ पैदा करेगा जिस पैदा करने की यह सबसे अधिक योग्यता रखता होगा। इस तरह धीरे धीरे वह उस चीज़ के पैदा करने में पूर्णता को पहुँच जायगा । फिर उसको बराबरी कोई और देश न कर सकेगा। श्रम विभाग के सिद्धान्तों के अनुसार यदि सब तरह के काम--सब तरह के पेशे सब लोग आपस में घाँट लें तो उनके काम को खूबी का मुकाबला आसानी से हो सकेगा । अर्थात् यह मालूम हो जायगा कि कौन 'प्रादमी, या कौन जाति, या कौन समुदाय किस काम को कितनी योग्यता से कर सकता है । इससे प्रतिस्पर्धा पैदा हो जायगी। लोग एक दूसरे से चढ़ा ऊपरी करने की कोशिश करने लगेंगे। इस चढ़ा ऊपरी को प्रेरणा से हर पादमी, हर समुदाय, हर पेशेषाला यही चाहेगा कि मेरा काम औरों से अच्छा हो । फल यह होगा कि हर एक पेशे की-हर एक काम को-जहाँ तक हो सकती है, तरकी हो जायगी। इस देशमें प्रायः हर जाति या हर समुदाय का पेशा बँटा हुआ है। यह बहुत अच्छी बात है।